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[५.१] ज्ञान-दर्शन
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प्रश्नकर्ता : खुद कबूल करता है कि पहले, जैसी खुद की मानसिकता थी उसमें और अभी में बहुत फर्क आ गया है। परिणाम की बात कबूल होती है।
दादाश्री : हमेशा ही किसी भी चीज़ में चेन्ज कब आता है ? जब उसकी वह प्रतीति उठ जाए और नई प्रतीति बैठ जाए तभी चेन्ज होता है, वर्ना चेन्ज नहीं होगा। यह रास्ता गलत है, फिर भी रोज़ उसी पर जाते हैं।
प्रश्नकर्ता : उनका घरेलू नौकर ठीक से काम नहीं करे तो कई बार गुस्सा हो जाते थे। पहले अपसेट हो जाते थे लेकिन अब ज्ञान के बाद अपसेट नहीं होते, बहुत गुस्सा नहीं होते।
दादाश्री : अर्थात् सभी बहत उच्च परिणाम आए हैं। हमें परिणाम से काम है न! हमें शब्दों की मारा-मारी नहीं है। हमें परिणाम मिलता है या नहीं? अगर उसका परिणाम नहीं आता तो फिर मुझे ध्यान रखना पड़ता।
प्रश्नकर्ता : कई बार व्यवहार और निश्चय की जो बात है, लोग उसे ठीक से समझ नहीं पाते। व्यवहार की बात निश्चय में ले जाते हैं और निश्चय की बात व्यवहार में ले जाते हैं।
दादाश्री : हाँ, वह ठीक है। अनादिकाल से लोगों को आदत नहीं है न इसलिए अगर इस प्रकार से आगे ले जाएँ फिर भी वापस दूसरे रास्ते पर चले जाते हैं। इसका परिणाम अच्छा आएगा। मैं इतना ही देखता हूँ कि परिणाम आ रहा है या नहीं।
प्रश्नकर्ता : हाँ, परिणाम आया है।
दादाश्री : यह विज्ञान खुद ही परिणाम लानेवाला है। यह आपको करना नहीं है। आप यदि दखल नहीं करोगे तो आपको मोक्ष में ले जाएगा।
प्रश्नकर्ता : सम्यक् दर्शन, ज्ञान और चारित्र रत्नत्रयी कहलाते हैं। क्या मनुष्य को मुक्ति दिलवाने के लिए ये ज़रूरी हैं ?