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[५.१] ज्ञान-दर्शन
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दादाश्री : वह तो, हमारी जो भी अवस्था उत्पन्न हो, उन अवस्थाओं को हम पार करें तो हमें अनुभव हो जाएगा। अब अगर तेरी जेब कट जाए तो, तेरे दर्शन में है, प्रतीति में है कि जब 'जेब कटी तो इससे हमें कोई लेना-देना नहीं है, सामने वाला गुनहगार है ही नहीं, मैं ही गुनहगार हूँ' लेकिन उस क्षण अनुभव के बिना ऐसा रहना मुश्किल है। फिर तुझे ऐसा हो...
प्रश्नकर्ता : एक बार कट जाए अर्थात् इस तरह से जेब कटनी ही चाहिए एक बार?
दादाश्री : नहीं। कटने के बाद असर नहीं होना चाहिए और ज्ञान हाज़िर रहना चाहिए। पहले अनुभव हो चुका हो तो वह अब काम करेगा। वर्ना अभी अगर दूसरी बार भी वह अनुभव नहीं हुआ होगा तो अभी भी अंदर दुःखी हो जाएगा और फिर ठिकाने पर आएगा लेकिन वह अनुभवपूर्वक नहीं कहा जाएगा। अनुभव तो, जेब कटते ही लगे कि जैसे कुछ हुआ ही नहीं है। फिर तो वह अनुभव जाएगा ही नहीं इसीलिए तो ऐसी घटनाएँ आपके लिए हितकारी हैं न! ऐसे सभी मौके जो आते हैं, वे आपको अनुभव करवाने के लिए आते हैं। यों ही नहीं आते। कोई धौल लगा जाए तो यों ही लगा दी, क्या मुफ्त में लगा गया? अनुभव देकर जाता है। कोई धौल लगाए तो अनुभव देगा। तुझे लगाए तब ध्यान
रखना।
लेकिन बाहर किसी से ऐसा कह मत देना कि 'मुझे ऐसा अनुभव करना है'। वर्ना यह जगत् तो ऐसा है न कि मिथ्याचारी है। उन्हें जोखिम उठाते देर नहीं लगेगी न! 'जो होगा देखा जाएगा' कहेंगे।
जितना अनुभव होगा उतना ही चारित्र शुरू हो जाएगा। अनुभव प्रमाण (कन्फर्मेशन) के बिना चारित्र उत्पन्न नहीं होता, प्रकट नहीं होता।
और तब, उस समय अंदर प्रतीति के अनुसार तप करना पड़ता है। जेब कट जाए, तब उस प्रतीति के अनुसार स्थिर रहने के लिए तप की ज़रूरत पड़ती है। वह है ज्ञान-दर्शन-चारित्र और तप। यदि तप रहे तो अनुभव प्रकट होता जाता है।