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[५.१] ज्ञान-दर्शन
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मोक्षमार्ग'। क्या ऐसा नहीं है कि जब दर्शन और ज्ञान दोनों संपूर्ण अवस्था में हों, उसी को मोक्षमार्ग कहा जाता है ?
दादाश्री : नहीं-नहीं। ऐसा नहीं है। सम्यक् दर्शन, ज्ञान और चारित्र ये तीनों मोक्षमार्ग हैं। इसलिए कहते हैं कि बाकी सारा बंधन मार्ग है। यदि इसमें आ गए, इसमें से एक भी पद में आ गए, तभी से मोक्षमार्ग की शुरुआत हो जाती है। बाकी सभी मिथ्या मार्ग हैं, वह सारा संसार मार्ग है और यह सम्यक् मार्ग है, यही मोक्षमार्ग है। सम्यक् दर्शन, सम्यक् ज्ञान और सम्यक् चारित्र!
प्रश्नकर्ता : सम्यक् दर्शन की परिभाषा बताइए।
दादाश्री : सम्यक् दर्शन अर्थात् भ्रांत दर्शन का अभाव हो जाता है। भौतिक चीज़ों में सुख नहीं है', उसे ऐसा भान हो जाता है, ऐसी श्रद्धा बैठ जाती है। ऐसी प्रतीति बैठना कि "सनातन सुख 'आत्मा' में है", उसी को सम्यक् दर्शन कहते हैं।
प्रश्नकर्ता : और सम्यक् ज्ञान और सम्यक् चारित्र के बारे में कुछ बताइए।
दादाश्री : अब, जब सम्यक् दर्शन हो जाए तो, उसके बाद दूसरे अनुभव होते जाते हैं। जैसे-जैसे अनुभव होते हैं, वैसे-वैसे सम्यक् ज्ञान के अंश बढ़ते जाते हैं। सम्यक् दर्शन से जो अनुभव होते हैं, वैसे-वैसे सम्यक् ज्ञान के अंश बढ़ते जाते हैं। अर्थात् सम्यक् दर्शन और सम्यक् ज्ञान की दशा बढ़ने पर सम्यक् चारित्र की शुरुआत होती है। राग-द्वेष रहित चारित्र ही सम्यक् चारित्र कहलाता है।
मोक्ष तो खुद का स्वभाव ही है ! जब ज्ञान, दर्शन व चारित्र सम्यक् हो जाएँ तो, उसी को मोक्ष कहते हैं। ये ज्ञान-दर्शन-चारित्र मिथ्या हैं. उसके बजाय यदि सम्यक् हो जाएँ तो मोक्ष ही है।
प्रश्नकर्ता : संसार में भी मिथ्या ज्ञान, दर्शन और चारित्र होते हैं
न?