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[५.१] ज्ञान-दर्शन
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प्रश्नकर्ता : क्या वह प्रतीति प्रज्ञा की वजह से है? वह प्रतीति प्रज्ञा करवाती है?
दादाश्री : नहीं। प्रज्ञा नहीं करवाती। मैं यह जो ज्ञान देता हूँ, वह करवाता है और दादा भगवान की कृपा करवाती है। मैं ज्ञान देता हैं और दादा भगवान की कृपा से ऐसा लगता है कि 'वास्तव में ऐसा ही है। आज तक का सब गलत था, आज तक की सभी मान्यताएँ गलत हैं'। जो रोंग बिलीफ थी वह राइट बिलीफ बन गई, बस। बीच में बुद्धि की दखलंदाजी है ही नहीं।
सत् में समा जाते हैं ये तीनों ही प्रश्नकर्ता : क्या बिलीफ से सत्य मिलता है ?
दादाश्री : यह दुनिया भी रोंग बिलीफ है। रोंग बिलीफ से यह संसार खड़ा हो गया है और राइट बिलीफ से 'वह' मोक्ष मिलता है। बिलीफ के अलावा कुछ भी नहीं है। बिलीफ से कुछ ज्यादा नहीं बिगड़ा है। सिर्फ इतना सा बिलीफ वाला भाग ही सड़ गया है। ज्ञान नहीं सड़ा है। यदि ज्ञान सड़ गया होता तब तो फिर खत्म ही हो जाता। सिर्फ बिलीफ ही सड़ी है तो उस बिलीफ, रोंग बिलीफ को खत्म कर दें और राइट बिलीफ बिठा दें तो वापस आ जाएगा।
प्रश्नकर्ता : तो राइट बिलीफ और सत्य के बीच में कितना अंतर है?
दादाश्री : राइट बिलीफ और सत्य? नहीं। वह जो सत् है न, वह राइट बिलीफ, राइट ज्ञान और राइट चारित्र, ये तीनों 'सत्' में समा जाते हैं। सत् इनमें नहीं समाता। सत् इनमें से किसी भी चीज़ में नहीं समा सकता।
प्रश्नकर्ता : फिर से समझाइए।
दादाश्री : राइट बिलीफ, राइट ज्ञान और राइट चारित्र, ये तीनों ही 'सत्' शब्द में समा जाते हैं लेकिन 'सत्' इनमें से एक में भी नहीं
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