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आप्तवाणी-१३ (उत्तरार्ध)
कहते हैं कि उनमें अन्य किसी चीज़ की मिलावट नहीं है और मिल भी नहीं सकती।
सनातन ज्ञान खुद ही आत्मा है। आत्मा ही ज्ञान है। सारा ज्ञान आत्मा ही है, एक ही है। वही परमात्मा है। अन्य किसी परमात्मा को ढूँढने की ज़रूरत नहीं है। परमात्मा आपके अंदर ही बैठे हुए हैं। आत्मा बैठा हुआ है और देहधारी भी बैठे हैं। मूर्त भी बैठा हुआ है और अमूर्त भी बैठा हुआ है।
शुद्ध ज्ञान ही आत्मा प्रश्नकर्ता : ऐसा कैसे हो सकता है कि ज्ञान ही आत्मा है ? ज़रा समझाइए।
दादाश्री : वह खुद ही आत्मा है। अब लोगों को यह समझ में नहीं आ सकता न! लेकिन लोग तो क्या समझते हैं कि आत्मा नाम की कोई चीज़ होगी! वह 'वस्तु' है ज़रूर लेकिन लोग ऐसी चीज़ ढूँढते हैं जो उनकी खुद की दृष्टि में आ सके। उसके बारे में सही बात कौन बताएगा? यह तो सिर्फ ज्ञानी ही बता सकते हैं, अन्य कोई इसको समझ ही नहीं सकता न! कृष्ण ही ज्ञान हैं और ज्ञान ही कृष्ण है। ये दादा भगवान ज्ञान हैं और ज्ञान ही दादा भगवान है। ज्ञान ही महावीर है और महावीर ही ज्ञान हैं लेकिन ये लोग जिसे ज्ञान कहते हैं, यह वह वाला ज्ञान नहीं है, यह विज्ञान कहलाता है। ये लोग कहते हैं, उसे भी अगर ज्ञान कहेंगे न, तब तो फिर उसके साथ तुलना करते रहेंगे। अतः जो एब्सल्यूट ज्ञान है उसे केवलज्ञान कहते हैं, वही आत्मा है। केवलज्ञान का अर्थ एब्सल्यूट ज्ञान है और वह खुद एब्सल्यूट ही है। केवलज्ञान ही आत्मा है।
ज्ञान के प्रकार दो प्रकार के ज्ञान हैं। एक मायावी ज्ञान और एक आत्मा का ज्ञान । यह मायावी ज्ञान किसने सिखाया?