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[४] ज्ञान-अज्ञान
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रास्ता कहलाएगा? रास्ता गलत है न? तो अनंत जन्मों से यह जाना है, इससे भी हाइ लेवल का ज्ञान जाना था। यह तो बल्कि अभी लो लेवल (निम्न स्तर पर) में आ गए हैं, हाइ लेवल का आपने लाभ नहीं उठाया तो इस लो लेवल का क्या लाभ उठाओगे? एक बार राजा का दीवान बनता है और दूसरी बार आदिवासी बनता है। ऐसा है यह जगत् ! आदिवासी में जब खराब सीज़न में चावल उगते हैं तो खुशी से झूम उठता है और दीवान को तो चाहे कितना ही सोना दें तब भी वह खुश नहीं होता लेकिन फिर है तो वही का वही जीव । वहाँ जाए तो वहाँ के संयोगों के अनुसार बन जाता है।
अज्ञान के आधार पर रुका है मोक्ष प्रश्नकर्ता : अब क्या यह शरीर अनंत काल तक रहेगा?
दादाश्री : खुद के स्वरूप का अज्ञान है, इसीलिए यह शरीर है। अज्ञान चला जाएगा तो यह व्यवहार भी छूट जाएगा और शरीर भी छूट जाएगा।
प्रश्नकर्ता : अर्थात् यह 'मैं' वास्तव में अज्ञानता से उत्पन्न हुआ है?
दादाश्री: यह सारा अज्ञानता से ही है। यह सारा अज्ञानता का ही परिणाम है। अंधेरे की वजह से ही लोग दुःख भुगत रहे हैं, वर्ना दुःख तो कहीं होता होगा? जहाँ पर उजाला है, प्रकाश है, वहाँ पर दुःख नहीं है। जहाँ अंधेरा है, वहीं पर दुःख है इसीलिए इस प्रकाश की ही बातें करते हैं। हम पूरे दिन किसकी बातें करते हैं? किस प्रकार से प्रकाश उत्पन्न हो, उसी की बातें चलती रहती हैं।
प्रश्नकर्ता : तो फिर अज्ञानता भी अनादिकाल से है?
दादाश्री : यह सब अनादिकाल से है, जब से हैं तभी से, यह सारा अज्ञान अनादिकाल से ही चला आया है लेकिन जब यह ज्ञान मिलता है तब इसका अंत आ जाता है।