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[४] ज्ञान-अज्ञान
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शुद्ध ज्ञान भगवान है और अशुद्ध ज्ञान, उल्टा-सीधा ज्ञान शैतान है। शैतान से फ्रेन्डशिप करना ठीक लगे तो वह करना और भगवान से फ्रेन्डशिप करना ठीक लगे तो उनसे करना। यह जो शैतान शब्द रखा है, वह सिर्फ समझने के लिए ही है!
शुभाशुभ ज्ञान ज्ञान ही आत्मा है। जहाँ अशुद्ध ज्ञान है, वहाँ पर अशुद्ध आत्मा है। यदि शुभ ज्ञान है तो शुभ आत्मा है और शुद्ध ज्ञान हो तो दरअसल (वास्तविक) आत्मा है लेकिन वह सब आत्मा ही है। ज्ञान मात्र आत्मा ही है।
फॉरेन वाले कहते हैं कि आप कहते हैं 'वीतराग भगवान हैं लेकिन वीतराग को किसने देखा है? वह कैसे पॉसिबल (संभव) हो सकता है ?' उन लोगों को समझ में नहीं आता है तब हम कहते हैं कि 'अपनी भाषा में समझ। आपको जो यह ज्ञान और समझ है, उसकी कीमत है या नहीं?' तब कहते हैं, 'हाँ उसकी कीमत तो है'। तब हम पूछे कि अफ्रीकनों की तुलना में आपका ज्ञान और समझ ज़्यादा है या कम? तब क्या कहते हैं ? ऐसा कहते हैं कि ज़्यादा है। अब वह समझ कैसी है? अशुद्ध समझ है और अशुद्ध ज्ञान है, उनकी समझ अशुद्ध ही है इसलिए बेमतलब ही मार देते हैं। अगर सामने कोई जानवर मिल जाए तो उसे काटकर खत्म कर देते हैं ! माँस वगैरह खाने के लिए नहीं। आफ्रीकनों की समझ भी अशुद्ध है और ज्ञान भी अशुद्ध है। जिनका ज्ञान उनसे बेहतर हो, लोग उनकी तारीफ करते हैं न? हाँ। इसके अलावा सभी फॉरेनर्स का ज्ञान भी अशुभ है। अर्थात् माँसाहार, बकरे काटते हैं न। वे कहते हैं, 'काटने ही चाहिए और अगर नहीं काटेंगे तो माँस कैसे खाएँगे?' वह कौन सा ज्ञान कहलाता है ? अशुभ ज्ञान कहलाता है। अशुद्ध नहीं कहलाता क्योंकि उसमें उनका हेतु खाने का है। इतना तो उसे समझ में आता है न कि यह अशुभ ज्ञान है। अशुभ क्यों है कि किसी जीव को मारकर, दुःख और त्रास देकर उसे मज़े से खाएँ तो वह अशुभ कहलाएगा। जब वे मुर्गे को मारते हैं न,