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आप्तवाणी-१३ (उत्तरार्ध)
तुझे ऐसा लगता है कि मौलिक है लेकिन यह ज्ञान तो पहले से चला आया है। शायद भाषा वगैरह मौलिक हो सकती है, ज्ञान तो जो पहले था वही है। कोई उत्पन्न कर ही नहीं सकता क्योंकि खुद ही ज्ञान है, उसे उत्पन्न कैसे कर सकता है और जो उत्पन्न होता है, उसका विनाश हो जाता है। जो ज्ञान... यह बुद्धिजन्य ज्ञान उत्पन्न होता है और नष्ट हो जाता है।
अतः ज्ञान के प्रकाश दो प्रकार के नहीं हो सकते। ज्ञान का प्रकाश एक ही प्रकार का होता है। यानी अगर कोई कहता है कि मुझसे ज्ञान में आधा ही रहा जाता है और आधा नहीं रहा जाता तो वह ज्ञान है ही नहीं। उसे कहते हैं अज्ञान। ज्ञान अर्थात् ज्ञान। हमेशा के लिए उजाला।
ज्ञान किसे कहते हैं ? हर प्रकार से वह टेली होना (मेल खाना) चाहिए। विरोधाभास उत्पन्न नहीं होना चाहिए। जहाँ से बोले वहाँ से। 50 साल बाद भी वह वाक्य टेली होना चाहिए और ज्ञान ही फल देता है। ज्ञान फल सहित ही होता है, प्रकाश है वह तो!
शुद्ध ज्ञान वही परमात्मा
प्रश्नकर्ता : क्या ज्ञान परमात्मा का गुण है ?
दादाश्री : ज्ञान ही परमात्मा है लेकिन यह ज्ञान नहीं। जो आप जानते हो न, यह दुनिया जो जानती है न, वह ज्ञान नहीं। यह दनिया जो जानती है वह तो भौतिक ज्ञान है। शुद्ध ज्ञान ही परमात्मा है। शुद्ध ज्ञान अर्थात् जैसा है वैसा ही दिखा देता है। यथार्थ दिखाता है। यानी क्या है कि सभी अविनाशी चीज़ों को दिखाता है। विनाशी को विनाशी जानता है और अविनाशी को अविनाशी जानता है। यथार्थ दिखाता है और शुद्ध ही दिखाता है।
जो ज्ञान है न, वही आत्मा है लेकिन वह सच्चा ज्ञान, सम्यक् ज्ञान होना चाहिए। यह ज्ञान भ्रांति ज्ञान है। ये मेरे ससुर, ये मेरे मामा और ये मेरे चाचा', वह सारा भ्रांति ज्ञान है। वह आत्मा नहीं है। वास्तविक ज्ञान ही आत्मा है।