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[४] ज्ञान-अज्ञान
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आप खुद देखोगे तब। बाकी तो वाणी है ही नहीं वहाँ पर, व्यक्त करने के लिए वाणी नहीं है अतः अभी तो 'मैं कौन हँ' इतना जान लिया तो सभी कुछ हो गया। कम्प्लीट ! फुल हो गया।
प्रश्नकर्ता : उसका अनुभव शुद्धात्मा को हुआ या पुद्गल को हुआ, किसे हुआ वह अनुभव?
दादाश्री : वह अनुभव, खुद ने खुद को ही जाना, अन्य कुछ नहीं। अन्य को 'मैं' मानता था, तो खुद अपने आप को ही जाना कि 'मैं यह हूँ, यह नहीं'। अलग हो गया।
आत्मा : स्वाधीन-पराधीन प्रश्नकर्ता : तो फिर यह बताइए कि आत्मा स्वाधीन है या पराधीन?
दादाश्री : स्वाधीन भी है और पराधीन भी है। अज्ञान के आधार पर पराधीन है और ज्ञान के आधार पर स्वाधीन है। पुरुष पुरुषार्थ सहित है वर्ना तब तक पुरुषार्थ नामक कोई चीज़ है ही नहीं। वह भ्रांत पुरुषार्थ है, वह भी एविडेन्स के आधार पर। नैमित्तिक के आधार पर है। अतः ज्ञान प्राप्ति के बाद जो पुरुषार्थ करते हैं, वह पुरुष होने के बाद का पुरुषार्थ है। उसके बाद आत्मा स्वाधीन है।
प्रश्नकर्ता : ज्ञान हो जाए और आत्मा स्वाधीन ही है तो फिर आत्मा को कुछ करने का रहता ही नहीं। अगर अज्ञान है और पराधीन है तो पराधीन कुछ कर नहीं सकता, तो आत्मा को क्या करना है, वह समझ में ही नहीं आता।
दादाश्री : ज्ञान हो जाने के बाद आत्मा पुरुषार्थ ही करता है।
प्रश्नकर्ता : पुरुषार्थ के बिना ज्ञान नहीं हो सकता न? गिनती सीखने के लिए भी पुरुषार्थ करना पड़ता है और आप कहते हैं कि ज्ञान के बाद ही पुरुषार्थ हो सकता है तो वह किस प्रकार से?