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[४] ज्ञान-अज्ञान
२११ दादाश्री : जिसे नासमझी है, उसे। अज्ञान को अहंकार हो गया। प्रश्नकर्ता : किस चीज़ का अज्ञान?
दादाश्री : दो चीजें। अज्ञान और ज्ञान। ज्ञान अर्थात् आत्मा और अज्ञान अर्थात् अनात्मा। उसे अहंकार हो गया, अज्ञान को। अतः अहंकार आने की वजह से यह सब हो गया। उस कारण रात-दिन चिंता और परेशानी, संसार में अच्छा नहीं लगता तो भी पड़े रहना पड़ता है। कहाँ जाए लेकिन? कहाँ जा सकता है ? वहीं के वहीं। इसलिए यहाँ पर खटिया पर सोते रहना पड़ता है न! नींद नहीं आए फिर भी।
प्रश्नकर्ता : अहंकार कहाँ से उत्पन्न हुआ?
दादाश्री : अहंकार ही अज्ञान है न! अज्ञान और ज्ञान दो अलग चीजें हैं। मान लीजिए यहाँ पर अगर कोई बड़े सेठ आते हैं, वे सेठ बहुत अच्छी बातें करते हैं लेकिन कोई अगर उन्हें आधा रतल ब्रान्डी पिला दे तो फिर वे कैसी बातें करेंगे?
प्रश्नकर्ता : ब्रान्डी का संयोग हो जाने से बात बदल जाएगी।
दादाश्री : नहीं। ये संयोग मिले हैं न, इसलिए ऐसा सब हो गया। ज्ञान स्वरूप को संयोग मिल गया इसलिए भ्रांति उत्पन्न हो गई। जैसे कि वह सेठ ऐसा कहता है न, कि 'मैं तो विजयश्री जी महाराजा हूँ, ऐसा हूँ, वैसा हूँ', कहता है...
प्रश्नकर्ता : दादा! तो ज्ञान कहाँ से उत्पन्न हुआ?
दादाश्री : ज्ञान तो उत्पन्न होता ही नहीं है न! ज्ञान तो परमानेन्ट वस्तु है। बाहर की वस्तुओं की वजह से अज्ञान उत्पन्न हो गया है। जैसे कि सेठ ने मदिरा पी ली न, संयोग से। अतः जब सारे संयोगों से छूट जाएगा तो पूरी तरह मुक्त हो जाएगा।
प्रश्नकर्ता : भाव किया तो वह अज्ञान का संयोग हो गया न उसे? दादाश्री : भाव से कोई लेना-देना नहीं है। अज्ञान का संयोग