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[४] ज्ञान-अज्ञान
प्रश्नकर्ता : जिस वजह से हम इस संसार में आए हैं, क्या वही कारण हमें मोक्ष में नहीं ले जाएगा ?
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दादाश्री : नहीं! संसार में लाने वाला कारण अलग था । यह कारण अलग है। संसार में लाने वाला कारण अज्ञानता थी और ज्ञान से इस तरफ मोक्ष में जाते हैं । अज्ञान से संसार की तरफ चले थे, अब ज्ञान से दूसरी तरफ अर्थात् मोक्ष में जाएँगे । अतः अज्ञान से जितना चले थे, पलटकर वापस उतना ही चलना पड़ेगा । यदि उलटे नहीं चले होते तो वापस लौटना नहीं पड़ता । तो जिन-जिन गलियों में से होकर आए थे उन सभी गलियों में से होकर वापस लौटना पड़ेगा। अतः अज्ञान से जगत् उत्पन्न हुआ था, खुद के स्वरूप का अज्ञान । 'मैं कौन हूँ', वह भूल गया, उसका भान चला गया। अब उसे ऐसा भान करवाते हैं कि 'मैं कौन हूँ' तो फिर अलग होता जाता
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माया का सही स्वरूप
प्रश्नकर्ता : माया क्या है ?
दादाश्री : माया अर्थात् जो वस्तु जिस स्वरूप में है उस स्वरूप में नहीं दिखकर, अलग ही स्वरूप में दिखाई दे । हमें भुलावे में डाल दे। उसे एक शब्द में कहा जाएगा, माया अर्थात् निज स्वरूप की अज्ञानता । अज्ञान की वजह से ही यह सारी माया दिखाई देती है । स्वरूप का अज्ञान है इसलिए माया उत्पन्न हो गई है। स्वरूप का अज्ञान चला जाए तो माया चली जाएगी। बाकी, जो मूल स्वरूप में न दिखकर अन्य स्वरूप में दिखाई देता है, वह कहलाती है माया । यह पुद्गल मूल स्वरूप में ऐसा नहीं है। पुद्गल का मूल स्वरूप बहुत सुंदर और अच्छा है लेकिन पुद्गल तो अन्य ही स्वरूप में दिखाई देता है ।
माया दर्शनीय नहीं है, वह भास्यमान परिणाम है । माया मतलब अज्ञानता, अन्य कुछ भी नहीं ।
प्रश्नकर्ता : अज्ञानता की वजह से ही माया है न ?