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[४] ज्ञान-अज्ञान
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मुख्य वस्तु स्वरूप की अज्ञानता अर्थात् माया ही है और अगर वह अज्ञानता चली जाएगी तो फिर जैसा है वैसा दिखाई देगा। बस, इस अज्ञानता से ही सबकुछ उल्टा दिखाई देता है।
यथार्थ स्वरूप अज्ञान का
प्रश्नकर्ता : अज्ञान का स्वरूप क्या है और वह कहाँ से आता है ?
दादाश्री : संसार में आपका नाम 'चंदूभाई' रखा गया और फिर आपने मान भी लिया। 'चंदूभाई' नाम गलत नहीं है। 'चंदूभाई' तो पहचानने का साधन है लेकिन आपने उसे सही मान लिया, वह अज्ञान है। रोंग बिलीफ कहलाती है वह और फिर 'इस बेटे का फादर हूँ, इसका मामा हूँ, इसका चाचा हूँ, इसका फूफा हूँ, इसका दादा हूँ', बोलो! कितनी सारी रोंग बिलीफें बैठ गई हैं?
अब ये रोंग बिलीफें पूरा अज्ञान का ही स्वरूप है, हम रोंग बिलीफों में पड़े हुए हैं। हमें किस चीज़ की ज़रूरत है? रोंग बिलीफें दुःखदायी हो गई हैं, इसलिए हम खुद ढूँढ रहे हैं क्योंकि मूलतः अपना स्वभाव सुखिया है अतः वापस मूल स्वरूप में आने के बाद यह सुख महसूस होगा। ये रोंग बिलीफें अर्थात् टेढ़े चले हैं हम। अतः हम इन रोंग बिलीफों को फ्रेक्चर कर देते हैं और राइट बिलीफ बिठा देते हैं। राइट बिलीफ को सम्यक् दर्शन कहा जाता है और सम्यक् दर्शन, सम्यक् ज्ञान, सम्यक् चारित्र से मोक्ष है। सम्यक् दर्शन अर्थात् यह जो टेढ़ा देखते हो, उसे हम सीधा दिखा देते हैं, दृष्टि बदल देते हैं। अज्ञान का स्वरूप आपको समझ में आ गया न अच्छी तरह से?
प्रश्नकर्ता : हाँ।
दादाश्री : अब उसके सामने की तरफ ज्ञान का स्वरूप है। जिस प्रकार से उत्तर-दक्षिण आमने-सामने हैं उसी तरह अज्ञान के सामने यह ज्ञान का स्वरूप है।
आप चंदूभाई हो, ऐसा तो आप अपनी तरह से जानते हो न?