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[४] ज्ञान-अज्ञान
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कहे, हमेशा ऐसा ही रहे तो कोई ज़रूरत नहीं है लेकिन वह तो फिर दूसरे ही दिन कहता है, 'मुझे चिंता हो रही है, मुझे क्रोध हो रहा है, मुझे लोभ हो रहा है'। अतः जो दु:खी है, उसे दुःख से मुक्त करवाने के लिए कर रहे हैं! बाकी 'आप' तो मुक्त ही हो लेकिन आपकी समझ में ऐसा घुस गया है कि आप दुःखी हो। भूत घूस गया है, सिर्फ भूत ही है, उस भूत को निकालना है।
हम रात को यहाँ पर सोए हुए हों और अगर दिन में भूत की बातें सुनी या पढ़ी हों और रात को अकेले सोए हुए हों, तब पास वाले रूम में अगर प्याला खड़के, चूहा खड़का दे, तो रात को साढ़े बारह बजे हमारे मन पर उसका असर हो जाता है कि 'भूत आया'। तब डर के मारे देखने भी नहीं जाते। पूरी रात वेदन करते रहते हैं और सुबह उठते ही जब पता लगाते हैं तो पता चलता है कि चूहे ने किया था।
अगर वह भूत छः घंटों के लिए इतना परेशान करता है तो यह जो अज्ञानता का भूत घुस गया है, वह अनंत जन्मों तक परेशान करता है। वर्ना आप तो मुक्त ही हो। आपको कोई बंधन है ही नहीं लेकिन आप पर वैसा असर होना चाहिए। वैसा अनुभव होना चाहिए।
और सभी संत पुरुष बताते हैं। क्या बताते हैं ? 'कान पकड़ो!' 'अरे भाई, इससे तो दम निकल जाता है। मेरा हाथ दुःख रहा है न! यों पकड़वाओ न सीधा।' तो सीधा नहीं पकड़वाते क्योंकि उन्होंने खुद ने ही टेढ़ा पकड़ा हुआ है। मैंने तो सीधा पकड़ा हुआ है इसलिए सीधा पकड़वा देता हूँ। क्योंकि मैं देखकर बताता हूँ। दुनिया के सभी संत नीचे रहकर सोचकर बताते हैं जबकि मैं ऊपर रहकर बिना सोचे आँखें मीचकर बताता हूँ क्योंकि यह सब मैंने अनुभव किया है और ऊपर पहुँच चुका हूँ। ऊपर चढ़कर यह सब बता रहा हूँ जबकि लोग नीचे रहकर वर्णन करते हैं। उसी से मार खिलवाई है न सारी।
सही गाइड मिला होता तो यह दशा ही नहीं होती न! जप करवाए, तप करवाए, अरे भाई किसलिए यह सब खेत जुतवाए? खेत जोता उसके