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[२.५] वीतरागता
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दादाश्री : शुरुआत तो, संकल्प की कुछ प्राप्ति हो तभी वीतराग रह पाएगा। तभी उस तरफ जाएगा न! इसलिए सब से पहले तो संकल्प की ज़रूरत है न! फिर उस दशा में पहुँचने के बाद संकल्प छूट जाएगा। यहाँ से स्टेशन जाना हो तो यहीं से क्या गाड़ी में बैठा जा सकता है? वहाँ के लिए रिक्षा करना पड़ेगा। रिक्षा का योगदान है न? यहाँ से मुंबई जाने में? तो कहते हैं, 'हाँ, लेकिन कहाँ तक?' स्टेशन तक, उसके बाद नहीं। उसी प्रकार से संकल्प का भी योगदान है!
किस आधार पर वे बने वीतराग? प्रश्नकर्ता : जब रामचंद्र जी और भगवान महावीर थे, उस समय वे संपूर्ण वीतराग हो चुके थे? ज्ञान के आधार पर या पहले की गई किन्हीं क्रियाओं के आधार पर?
दादाश्री : ज्ञान के आधार पर।
प्रश्नकर्ता : दोनों? और क्या उनके पुद्गल (जो पूरण और गलन होता है) भी उसी जन्म में पूर्ण वीतराग हो चुके थे?
दादाश्री : हाँ। प्रश्नकर्ता : रामचंद्र जी और महावीर भगवान। दादाश्री : रामचंद्र जी उसी जन्म में मोक्ष में गए थे।
प्रश्नकर्ता : तो क्या वास्तव में उनके पुद्गल के सभी राग-द्वेष चले गए थे?
दादाश्री : सभी चले गए थे।
प्रश्नकर्ता : ड्रामेटिक। सिर्फ उन्होंने सारा ड्रामा किया। रामायण का जो पूरा ड्रामा हुआ, क्या वह पूर्व कर्म की वजह से था?
दादाश्री : हाँ, ज्ञानी वशिष्ठ मुनि मिले थे। प्रश्नकर्ता : उनसे ज्ञान लिया था?