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[३] मैला करे वह भी पुद्गल, साफ करे वह भी पुद्गल
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दादाश्री : ऐसा हो जाता है, सभी को ऐसा ही हो जाता है
प्रश्नकर्ता : तो अंदर मुझे वह खटक रहा था कि यह कुछ तीसरा ही हो गया। उसका पता नहीं चल रहा था ।
दादाश्री : जो ठपका देता है उसे मैं देखता हूँ कि यह ठीक से ठपका दे रहा है या नहीं ।
प्रश्नकर्ता : तब यह सार समझ में आया कि यह जो ठपका देता है, भूल निकालता है, प्रतिक्रमण करता है, वे सब एक ही हैं।
दादाश्री : वही का वही है।
प्रश्नकर्ता : प्रज्ञा सिर्फ लाइट देती है कि यह...
दादाश्री : वह देखती है। बस इतना ही है ।
प्रश्नकर्ता : हाँ, वह अपना प्रकाश दिखाती है, बस ।
दादाश्री : सभी लोग उस प्रकाश में नहीं आ सकते । अतः रोज़रोज़, ज़रा-ज़रा सा आते जाते हैं, ज़रा-ज़रा सा करते-करते बढ़ता जाता है न! वह प्रकाश, वह सब उसकी श्रद्धा में है लेकिन जब उदय आता है, उसके बाद वह दर्शन खड़ा होता है। उसके बाद फिर उसे ज्ञान अनुभव में आता है। अनुभव में आने के बाद फिर वर्तन में आता है। अभी तो दर्शन में आ रहा है। कभी ज़रा सा अनुभव में आ जाता है । तब उतना ही वर्तन में आता है।
प्रश्नकर्ता : कुछ समय अर्थात् चौबीस घंटों में से कितने मिनट और कितने सेकन्ड, उनमें से कितने सेकन्ड तक यह दर्शन और जागृति रहती है? और आप कहते हैं कि निरंतर रखना है । यह तो बहुत ही कम रहता है तो वह तो कुछ भी नहीं है न!
दादाश्री : वह नहीं रह पाएगा लेकिन ऐसे करते-करते आगे बढ़ेगा। निरंतर इतना लक्ष रहे तो भी बहुत हो गया !