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आप्तवाणी-१३ (उत्तरार्ध)
दादाश्री : उसी जन्म में मोक्ष में गए क्योंकि वे तैयार जीव थे ! सिर्फ ज्ञानी के स्पर्श की ज़रूरत थी, निमित्त की ज़रूरत थी ।
वीतरागत्व प्राप्ति की राह
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प्रश्नकर्ता : वीतराग दशा में रहने के लिए क्या करना चाहिए ? दादाश्री : किसी के प्रति राग-द्वेष, क्रोध - मान - माया - लोभ नहीं करना, वही वीतरागता है । वैसा किया तो वीतराग दशा चूक गए। अगर वैसा हो गया तो जानना कि यह चूक गए। फिर से वापस साध, अगर चूक गए तो फिर से साध लेना । ऐसे करते-करते स्थिर हो जाएँगे । जिन्हें ऐसा करना है वह तो लाएगा ही न, निबेड़ा तो लाएगा न! छोटे बच्चे भी खड़े होते हैं और वापस गिर जाते हैं । धक्का गाड़ी को वापस धकेलता है। वापस गिर जाता है फिर से खड़ा होकर वापस गाड़ी को धकेलता है । ऐसे करते-करते चलने लग जाता है न! तब क्या राग-द्वेष होते हैं ? क्रोध-मान-माया-लोभ ? नहीं न ! तो फिर वह वीतरागता ही है न । अब दूसरा कुछ ढूँढने को नहीं रहा । वही वीतरागता है । वीतरागता और कुछ नहीं है। यों तो इंसान कहता है, 'नहीं-नहीं मुझे कोई राग-द्वेष नहीं हैं ' । बड़े आए राग-द्वेष नहीं हैं वाले ! देखो तो सही ! जब इस तरह स्पष्ट करते हैं, ‘क्रोध-मान- माया - लोभ', तब कहते हैं, 'वे तो हैं'। तो भाई, तू समझता ही नहीं है न राग- - द्वेष को !
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क्रोध-मान-माया-लोभ का छोटा स्वरूप राग- -द्वेष है, शॉर्ट स्वरूप । कषाय में ये चार ही योद्धा हैं, क्रोध - मान - माया - लोभ और संक्षेप में उनका स्वरूप राग-द्वेष है। दुनिया इन कषायों से चल रही है। हिंदुस्तान की दुनिया कषायों से चल रही है । मज़दूर - वज़दूर सभी कषाय में जबकि फॉरेन वाले कषाय में नहीं हैं। विषय में रहते हैं ।
या तो विषय में रहते हैं या फिर कषाय में रहते हैं या फिर अकषाय में अर्थात् भगवान पद में रहते हैं । अकषाय पद, वहाँ से तो भगवान पद माना जाता है लेकिन लोगों में कह नहीं सकते। कहने से लोग उल्टा बोलेंगे, ‘ये बन बैठे हैं बड़े भगवान! ' हमें मन में समझ जाना है कि