________________
[२.४] प्रशस्त राग
१५३
प्रश्नकर्ता: है ।
दादाश्री : जो ज्ञानीपुरुष पर होता है, महात्माओं पर होता है, वह राग हितकारी है । उस प्रशस्त राग का फल क्या है ? ' वीतराग' । इसी का फल आएगा । यों ही, बाकी कुछ नहीं करना है, इसी का फल । हमने बीज बोया है, मक्की का दाना बोया, पानी डाला, वह सब डाला फिर भुट्टा अपने आप लगता है या उसमें हमें बनाना पड़ता है ?
ज्ञानी ही तेरा आत्मा
प्रशस्त राग अर्थात् सर्व दुःखों से मुक्त करवाने वाला राग । सर्व दुःखों का, सांसारिक दुःखों का अभाव करवाने वाला वह राग ! आपका द्वेष छूट गया है लेकिन आपका राग नहीं छूटा है। वह राग जो सभी जगह चिपका हुआ है न, वह वहाँ से मुझ पर आ जाता है। वह राग दुःखदाई लगता है इसलिए कहता है, 'दादा पर जो राग है, वह ?' वह तो प्रशस्त राग कहलाता है । जो राग प्रत्यक्ष मोक्ष का कारण है ! अगर ज्ञानीपुरुष पर राग हो जाए तो अच्छा है न! फिर सारी झंझट छूट जाएगी !
और कृपालुदेव ने वापस इसका ताल बिठा दिया कि 'सत्पुरुष ही तेरा आत्मा है'। अर्थात् यह पानी भी वहीं पर जाता है ! सभी तरह से ताल मिल जाते हैं !
ज्ञान मिलते ही दादा पर राग
प्रश्नकर्ता: दादा, आपने कहा है न कि गौतम स्वामी का केवलज्ञान प्रशस्त राग की वजह से ही रुक गया था!
दादाश्री : हाँ। और नहीं तो क्या ? उस राग की वजह से रुक जाए तो हर्ज नहीं है। पाँच जन्मों तक उस राग की वजह से रुक जाए तो भी हर्ज नहीं है। इस राग जैसा और कोई राग है ही नहीं दुनिया में। फिर संसार के दूसरे सारे भूत नहीं घुसते न ! और यह राग तो बहुत हितकारी है लेकिन वह राग (किसी को) होता ही नहीं है न! इसका होना मुश्किल है !! वह तो, यह अक्रम विज्ञान है, इसलिए पहले एकदम से ठंडक हो