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आप्तवाणी-१३ (उत्तरार्ध)
और को क्या नुकसान? किसी और को क्या लेना-देना? जिसे होता है उसे नुकसान है, उसके लिए अगले जन्म का कारण है।
प्रश्नकर्ता : और उसके बावजूद भी अगर यह मशीनरी जो प्रवर्तना करती है, उसे वीतराग माना जाएगा?
दादाश्री : वीतराग ही है। ये आँखें भी वीतराग हैं, कान भी वीतराग हैं। कोई यदि गालियाँ दे तो कान विचलित नहीं होते, अंदर वाला विचलित होता है।
प्रश्नकर्ता : अंदर वाला मतलब कौन? दादाश्री : अहंकार और ममता।
प्रश्नकर्ता : विचलता वीतरागता में नहीं आती? ऐसा है कि उस पर असर हो गया?
दादाश्री : विचलित चलेगी लेकिन वह सहज होनी चाहिए। विचलित भी चलेगी, मारा-मारी भी चलती रहे और वीतराग रहे। मारा-मारी भी कर सकता है, राग-द्वेष रहित। यदि यह ज्ञान है तो रह सकता है।
जलेबी वीतराग है, पॉइज़न भी वीतराग है, अमृत भी वीतराग है। सभी चीजें वीतराग हैं।
प्रश्नकर्ता : ये जो जीवित दिखाई देते हैं, वे सब?
दादाश्री : वे सब भी वीतराग हैं। इतना यदि समझ जाए तो काम हो जाएगा। यह समझकर इस व्यवहार में रहने वाले खुद तो वीतराग हो गए। इन सभी को वीतराग देखता है न! वीतराग का मतलब क्या है? हम क्या कहते हैं ? वीतराग नहीं कहते, वीतराग कहना गुनाह है क्योंकि असल वीतराग के लिए इस वीतराग की वैल्यू नहीं है। अतः वीतराग नहीं कहते। हम क्या कहते हैं कि जीवमात्र, तमाम जीव निर्दोष ही हैं। वे दोषित दिखाई देते हैं, वही भ्रांति है। अतः उसे वीतराग नहीं