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[२.४] प्रशस्त राग
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से अंतिम स्टेशन है। अपने आप ही आएगा। उसकी क्या जल्दी है? केवलज्ञान तो हाथ में आ ही गया समझो, ऐसा है। जब से स्पष्ट वेदन हुआ न तभी से वह केवलज्ञान कहलाता है।
प्रश्नकर्ता : केवलज्ञान नहीं लेकिन ज्ञान तो रुक जाएगा न?
दादाश्री : नहीं। ज्ञान तो नहीं रुकेगा। ज्ञान तो बल्कि बढ़ेगा। ऐसा है न कि ऐसा किसे होता है ? बाहर बहुत ही उलझन में पड़ा हुआ कोई इंसान हो और, उसे जब ऐसा हो जाए तब फिर वे सब उलझनें सुलझ जाती हैं और एक ही दृष्टि हो जाती है। हर एक को ऐसा नहीं होता। जो बाहर दुनिया में बहुत डूब चुका है, बाहर बहुत जगहों पर उसका चित्त चिपका हुआ हो न तो जब यहाँ पर चिपकता है तो बाहर सभी जगह से उखड़ जाता है। अहितकारी नहीं है यह। इसे प्रशस्त राग कहा गया है। ज्यादातर यह राग तो उत्पन्न ही नहीं होता। अगर हो जाए तो उत्तम कार्य करता है।
प्रश्नकर्ता : क्या ज्ञानी पर प्रशस्त राग के अलावा पौद्गलिक राग भी उत्पन्न हो सकता है?
दादाश्री : पौद्गलिक राग तो हमेशा उखड़ ही जाता है। वह राग चिपकता है, पुद्गल से चिपकता है लेकिन फिर उखड़ जाता है, अंत में फिर प्रशस्त राग के रूप में ही रहता है। ऐसा हुआ है, पहले भी हुआ ही है न? यह कोई नई चीज़ नहीं है।
ऐसा होता है लेकिन अंत में बाकी सभी जगहों से छूट जाता है। बाकी सभी जगह जो झाड़ियाँ होती हैं न सारी, उन सब में से छूट जाता है और एक ही जगह पर आ जाता है। इसलिए इसे लोगों ने सब से अच्छा साधन माना है, प्रशस्त राग को। बाकी सब झाड़ियाँ वगैरह सबकुछ उखड़ जाता है।
प्रशस्त राग, वह स्टेपिंग है। प्रशस्त राग अर्थात् मोक्ष दिलवाने वाला राग। स्टेप्स चढ़ाता है यह