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आप्तवाणी - १३ (उत्तरार्ध)
दादाश्री : नहीं, नहीं। बावरापन नहीं है। बावरापन आपको, खुद को समझ में आता है। खुद आत्मा है, फिर क्या बावरापन समझ में नहीं आएगा ?
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प्रश्नकर्ता : गौतम स्वामी के साथ क्यों ऐसा हुआ था ?
दादाश्री : वह हुआ था लेकिन उसकी वजह से ज्ञान में विलंब हो सकता है लेकिन ज्ञान चला नहीं जाएगा । ज्ञान में विलंब हो सकता है लेकिन वह प्रशस्त राग कहलाता है । प्रशस्त राग का फल क्या है ? वीतरागता। यह जो सांसारिक राग है न, उसका फल राग-द्वेष है ।
अतः वीतद्वेष होने के बाद कौन सा राग बचता है ? प्रशस्त राग बचता है। जो राग मोक्ष का प्रत्यक्ष कारण है । उसमें सांसारिक राग का छींटा तक नहीं होता ।
प्रश्नकर्ता : क्या प्रशस्त राग आसानी से खत्म हो जाता है ?
दादाश्री : उसमें हर्ज नहीं है । अगर प्रशस्त राग न जाए तो भी हर्ज नहीं है क्योंकि वह मोक्ष दिलवाकर ही दम लेता है। अतः इस बारे में कोई चिंता नहीं करनी है । प्रशस्त राग, जैसा गौतम स्वामी को महावीर भगवान के प्रति था । वह अगर अभी नहीं हो रहा है तो कुछ समय बाद अपने आप ही विलय हो जाएगा, विलय होता ही रहेगा ।
प्रश्नकर्ता : उससे तो उनका मोक्ष रुक गया, गौतम स्वामी का ।
दादाश्री : उसे क्या 'रुकना' कहा जाएगा ? छः या बारह साल बाद होगा, पंद्रह साल बाद होगा, अगले जन्म में हो जाएगा। इस प्रशस्त राग का डर नहीं है, सांसारिक राग का डर है । प्रशस्त राग चाहे कितना भी हो, उसके प्रति भय रखने जैसा नहीं है ।
प्रश्नकर्ता : प्रशस्त राग की वजह से केवलज्ञान नहीं हो सकता न ?
दादाश्री : हमें केवलज्ञान की क्या जल्दी है ? कहना, 'तुझे आना हो तो आना'। ऐसा है न, हम ट्रेन में बैठ गए हैं न ! केवलज्ञान तो सब