________________
१३६
आप्तवाणी-१३ (उत्तरार्ध)
दुनिया को जो बातें कभी भी स्पष्ट नहीं हो सकती थीं, वैसा स्पष्टीकरण दिया है मैंने। छोटी से छोटी बात का।
अक्रम विज्ञान ने बनाया वीतद्वेष सिर्फ 'वीतराग' ही कहा गया है। अपने यहाँ पर ज्ञान देते ही सब से पहले द्वेष चला जाता है, हर किसी का। कोई गालियाँ दे तो भी उसके साथ समभाव से निकाल करता है लेकिन द्वेष नहीं करता। क्या इनके साथ आपको ऐसा कुछ अनुभव हुआ है? पूरा-पूरा अनुभव हुआ है।
प्रश्नकर्ता : निरंतर अनुभव होता है।
दादाश्री : गालियाँ देते हैं तब भी! वर्ना गाली का तो क्या परिणाम आता है? वह गालियाँ दे तब क्या होता है ? द्वेष होता है या राग?
प्रश्नकर्ता : द्वेष ही होता है। इस ज्ञान के बाद तो जहाँ पर द्वेष करने योग्य जगह हो वहाँ पर भी अब द्वेष नहीं होता।
दादाश्री : द्वेष करने योग्य व्यक्ति के घर पर छोड़ दिया जाए तब भी अगर द्वेष नहीं हो, तब समझना कि यह वीतराग बनने लायक हो गया!
द्वेष करने की जगह पर द्वेष होने लगे तो, वह तो मीनिंगलेस चीज़ है। आपको अब पहले जैसा द्वेष नहीं होता न किसी जगह पर?
प्रश्नकर्ता : एक जगह पर होता है।
दादाश्री : एक जगह में हर्ज नहीं। एक जगह हो तब तो वह मुझे सौंप देना। लेकिन बाकी सभी जगह पर, पूरी दुनिया में किसी भी जगह पर द्वेष नहीं होता न? एक जगह पर आपको जो होता है, वह तो आपकी दृष्टि की भूल है, समझने में भूल है। वास्तव में तो वहाँ पर भी नहीं होता और बाकी जगहों पर नहीं होता है न? अतः किसी भी जगह पर द्वेष नहीं होता है न?
प्रश्नकर्ता : नहीं, कहीं पर भी नहीं।