________________
अपने यहाँ गाँव में कहावत है कि 'मैं, बावा और मंगलदास' यानी कि कोई व्यक्ति अगर अकेला बहुत सारे काम संभाल रहा हो और हम उसे पूछे कि 'आप तो बहुत सारे काम करते हैं! कौन-कौन आपकी मदद करता है? तब वे कहते हैं, 'भाई, यहाँ पर तो कोई भूत भी मदद नहीं करता। यहाँ तो मैं ही हूँ, मैं ही बावा और मैं ही मंगलदास! सभी में मैं ही हूँ!' इसकी विशेष स्पष्टता करते हुए दादाश्री उदाहरण देते हैं कि "आधी रात को कोई दरवाज़ा खटखटाए और हम पूछे कि कौन है? तो वह क्या कहता है कि 'मैं', लेकिन भाई मैं कौन? तो कहता है, 'मैं बावा'! अरे भाई, बावा लेकिन कौन सा बावा? तो वह कहता है, 'मैं, बावा, मंगलदास'। तभी पता चलता है कि कौन है।" अब इसमें है तो वह एक ही व्यक्ति लेकिन तीन बार खुद का परिचय अलग-अलग तरह से देता है यानी कि उसकी पहचान बदलती रहती है।
अब इसमें आत्मा कहाँ पर आएगा? ___मैं अर्थात् शद्धात्मा, मूल परमात्मा, 360 डिग्री वाले! बावा वह बीच का अंतरात्मा है और जो मंगलदास है, वह चंदूभाई है! शरीर का जो मिकेनिकल भाग है वह, जिसे डॉक्टर चीरकर देख सकते हैं, वह स्थल शरीर और उस शरीर के अवयव जो कि माइक्रोस्कोप से देखे जा सकते हैं, वे सभी मंगलदास में आता है। शरीर में फिज़िकल भाग है, जिसका पूरण-गलन (चार्ज होना, भरना-डिस्चार्ज होना, खाली होना) होता है, वह सभी मंगलदास में आता है।
अब बावा का मतलब क्या है ? कभी वह कहता है 'मैं चंदूभाई और कुछ देर बाद कहता है, मैं इस बच्चे का पापा हूँ, इसका पति हूँ, इसका ससुर हूँ, इसका बॉस हूँ!' 'अरे भाई, आप एक ही हो और इतने सब अलग-अलग नाम कैसे कह रहे हो? कोई एक कहो न!' तब वह कहता है, 'नहीं, वह सब मैं ही हूँ', सही है न? रियल में?' तो वह कहता है, 'हाँ, रियल में'। यह जो बदलता है, वह बावा है।।
जब तक 'मैं' नाम से पहचाना जाता है तब तक वह मंगलदास है. लेकिन क्रिया के अधीन वह बावा कहलाया। वास्तव में मूलतः तो 'मैं' ही है। 'मैं' कोई गलत नहीं है लेकिन इस 'मैं' का अन्य जगह पर
63