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[२.१] राग-द्वेष
अब आप तो कहते हैं कि जब तक अज्ञान है, तब तक राग-द्वेष नहीं जाएँगे?
दादाश्री : अज्ञान चला जाएगा तो राग-द्वेष रहेंगे ही नहीं। प्रश्नकर्ता : फिर शरीर रहता है या नहीं रहता? दादाश्री : शरीर भले ही सौ बरस तक रहे और मस्ती में रहे।
प्रश्नकर्ता : वह 99.99 प्रतिशत। सभी के लिए नहीं है, वह आपके लिए है।
दादाश्री : अभी तो कितने सारे लोग ऐसे हो गए हैं।
प्रश्नकर्ता : हाँ, वह तो ठीक है लेकिन यह तो राग-द्वेष छोड़ने की बात है अतः मेरा कहना ऐसा है कि जब तक देह है, जब तक प्राण हैं, तब तक प्रकृति रहेगी और तब तक राग-द्वेष हैं।
दादाश्री : तो फिर देह के जाने के बाद बचेगा क्या? वह तो जब देह की उपस्थिति में राग-द्वेष निकल जाएँगे, तभी वीतराग कहलाएगा, वर्ना राग-द्वेष तो रहते ही हैं। वीतराग तो बहुत हो चुके हैं हिंदुस्तान में! अतः आपको यह जो पहले का प्रेजुडिस है न, इसीलिए आपको मन में ऐसा लगता है। अतः आपको समझ लेना है कि, 'ओहोहो! अभी भी प्रेजुडिस है।
इनके परिणाम बताता हूँ कि जहाँ राग-द्वेष होंगे, वहाँ पर चिंता हुए बगैर रहेगी ही नहीं। इसलिए इन क्रमिक मार्ग के ज्ञानियों को चिंता होती है जबकि अक्रम में राग-द्वेष नहीं रहने की वजह से चिंता नहीं होती।
प्रश्नकर्ता : संसार में राग नहीं रखें तो दुःख होता है और अगर राग रखें तो मोक्ष रुक जाता है।
दादाश्री : ऐसा है न, अब आप वास्तव में क्या हो? रियली स्पीकिंग चंदूभाई हो या शुद्धात्मा?