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[२२] पसंद-नापसंद
डिफरेन्शिएट किस तरह से करें कि वास्तव में यह उदासीनता है या फिर यह सब मंद पड़ चुका है ?
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दादाश्री : यह तो, जो ऐसा लगता है कि मंद हो गई हैं, वे तो अभी फिर से जागेंगी। अभी तो वे जागेंगी। सत्तर साल के बूढ़े को जलेबी याद आती है, लड्डू याद आते हैं । अरे, तरह-तरह के स्वाँग याद आते हैं। चबा नहीं पाता तब भी जो नहीं चबाई जा सकें, ऐसी चीजें याद आती हैं। अतः यह तो ऐसा है न कि विषय सिर्फ जवानी में ही नहीं रहता, बुढ़ापे में भी बहुत विषय जागता है । इसलिए कोई उदासीनता नहीं आने वाली । परेशान मत होना। उसका डर मत रखना।
प्रश्नकर्ता : उदासीनता की सही डेफिनेशन बताइए ।
दादाश्री : उदासीन का मतलब क्या है ? जब देखता है तब अच्छा लगता है। जब तक देखे नहीं तब तक उसे याद नहीं आता । याद आए पर कचोटे नहीं, तो वह उदासीन दशा है। उससे आगे की दशा वीतरागता कहलाती है। तब तक उदासीन दशा रहती है। उसे खुद को वह याद ही नहीं आता और जब ऐसी कोई चीज़ दिखाई दे तब वह उसे सिर्फ भोग लेता है लेकिन जैसे ही वह चीज़ गई तो फिर कुछ भी नहीं, उदासीन ।
हम जिसे उपेक्षा भाव कहते हैं वैसा नहीं । यह उदासीन तो उच्च स्थिति है। अतः उदासीनता आने में देर लगती है। अभी तक तो वैराग्य भी नहीं आया है। उदासीनता अर्थात् नाशवंत चीज़ों के प्रति भाव टूट जाता है और अविनाशी की खोज रहने के बावजूद भी वह प्राप्त नहीं हो पाता !
प्रश्नकर्ता : उदासीनता या उपेक्षा, क्या ये वीतरागता के आधार हैं ?
दादाश्री : उदासीनता से शुरुआत होती है वीतरागता की । उपेक्षा उदासीनता के पहले की स्टेज है । वह बुद्धि द्वारा है ।
प्रश्नकर्ता : सामान्य उदासीनता और भाव उदासीनता के बारे में ज़रा समझाइए। इनमें क्या फर्क है ?