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आप्तवाणी-१३ (उत्तरार्ध)
दादाश्री : हाँ, भगवान की हद और भगवान की उपस्थिति! कल्याण कर देंगे न!
सौ प्रतिशत, जा चुके हैं राग-द्वेष देखो इसमें ऐसा लिखा है कि, 'यदि एक परमाणु जितना भी राग-द्वेष, क्रोध-मान-माया-लोभ का भाव विद्यमान है तो सभी शास्त्रों का जानकार होने के बावजूद भी वह आत्मा को नहीं जानता है और क्योंकि आत्मा को नहीं जानता है इसलिए अनात्मा को भी नहीं जानता। यानी कि सम्यक् दृष्टि भी नहीं है' ऐसा कहा है। क्या करोगे अब? बिल्कुल सौ प्रतिशत सही बात लिखी है और मैंने सौ प्रतिशत सही बात दी है। तो यह भूल किससे हो रही है ?
प्रश्नकर्ता : 'राग का एक भी परमाणु नहीं रहा है', व्यक्ति को ऐसा भान कब होता है? और वह भान क्यों नहीं हो पाता?
दादाश्री : लेकिन उसे भान के बारे में पूछना चाहिए। यह करेक्ट है या मुझसे कोई गलती हो रही है', ऐसा पूछना चाहिए।
प्रश्नकर्ता : वह कैसे पता चलेगा कि राग-द्वेष का एक भी परमाणु बचा है या नहीं बचा?
दादाश्री : राग का परमाणु नहीं बचा है, ऐसा मैं जानता हूँ और आप नहीं जानते, ऐसा क्यों?
प्रश्नकर्ता : यों नहीं। व्यवहार में?
दादाश्री : उसे व्यवहार कहो या त्यौहार कहो लेकिन ये परमाणु नहीं हैं आपमें। व्यवहार क्या एक ही तरह का होता है ? त्यौहार नहीं आते? दिवाली का त्यौहार, धनतेरस का त्यौहार वगैरह नहीं आते! लेकिन आपमें राग के परमाणु नहीं हैं।
प्रश्नकर्ता : राग का एक भी परमाणु नहीं है। बहुत ही बड़ी बात है यह तो!