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मैं दादा भगवान जैसा शुद्धात्मा ३५१ अंत में छूटे ज्ञानी का अवलंबन ३७२ चौदहवें गुणस्थानक में निरपेक्ष ३५२ व्यवहार व निश्चय के आलंबन ३७२ शुद्धात्मा का अवलंबन किसे? ३५३ आज्ञा-चारित्र में से दरअसल में ३७५ निरालंब की प्राप्ति के लिए... ३५४ रिलेटिव में से एब्सल्यूट की तरफ ३७५ अंत में सत्संग भी आलंबन ३५६ थिअरम ऑफ एब्सल्यूटिज़म ३८० अंतर, आधार और आलंबन में ३५७ जहाँ निरालंब दशा, वहाँ निर्भयता...३८१ आधार-आधारी की समझ ३५९ निरालंब वही केवलज्ञान स्वरूपी... ३८२ किस रास्ते से हो सकते हैं निरालंब?३६० इसीलिए फेल हुए केवलज्ञान में ३८५ हूँफ का स्वरूप ३६६ अंत में विज्ञान स्वरूप
३८६ यदि हूँफ लो तो ज्ञानी की ही ३७०
[7] 'मैं, बावा और मंगलदास' पहचान, 'मैं, बावा और... ३८८ पहुँचे परमात्मा के पोर्च में ४२० जो बदलता है, वह है 'बावा' ३८९ पर और स्व का क्षेत्र
४२१ ये सभी खेल किसके हैं? ३९२ अंत में बावा! नहीं रहती है बावी ४२२ दो मन : 'बावा' का और... ३९५ जीवन बने सुगंधित
४२४ तीर्थंकर, वह है कर्म
३९७ अब हुआ विश्वास, मुक्ति का ४२५ जो मोक्ष ढूँढ रहा है : मोक्ष स्वरूप...४०० 'बावा' शुद्ध तो 'मैं' शुद्ध ४२६ पुद्गल भी बन जाता है भगवान ४०१ 'मैं' और 'बावा' तीन सौ साठ पर..४३० स्व-दोष दिखने लगें, तभी से... ४०२ डिग्री किसकी है? कितनी? ४३० इस प्रकार पोतापणुं रखवाता है... ४०४ ...तब से ड्रेस वाला बावा ४३६ जो बंधा हुआ है वह 'यह' है ४०५ 'मंगलदास' पर क्या असर? ४३९ नहीं पूछने चाहिए बेकार के प्रश्न... ४०६ कौन सी डिग्री पर, ज्ञानी पद व... ४४३ बावा और मंगलदास की स्पष्टता ४०७ भेद. तीन सौ साठ और तीन सौ... ४४४ सर्व शास्त्रों का सार इतने में ४०९ 'मैं', 'बावा' और 'मंगलदास'... ४४५ ब्रह्म, ब्रह्मा, भ्रमित
'दादा भगवान' और 'दादा बावो' ४५० पर्सनल, इम्पर्सनल और एब्सल्यूट ४११ तब ज्ञान प्रकट होता जाएगा ४५१ रोंग बिलीफ से है इम्प्योर सोल ४१३ इतना फर्क है, ज्ञानी और भगवान में४५२ केवलज्ञान के बाद अभेद स्वरूप में४१४ प्रकट हुआ चौदह लोक का नाथ ४५२ 'हम' और 'आप' दोनों बावा ४१५ ज्ञानीपुरुष, वही देहधारी परमात्मा ४५३ खाने वाला, वेदने वाला और जानने...४१६ नहीं है जल्दबाजी केवलज्ञान की ४५५ ममता, वह बावा है ४१७ ज्ञानी की करुणा
४५५ शुद्धात्मा से प्रार्थना, बावा की ४१७ खुला रहस्य अक्रम विज्ञान के... ४५६ अब निकाली बावापद
४१८ तमाम शास्त्रों का सार, मैं बावा... ४५७
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