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आप्तवाणी-१३ (उत्तरार्ध)
है। फेथ (faith)- श्रद्धा, रीज़न (reason)-प्रज्ञा और कॉन्शियसनेस (consciousness) चेतन है।
दादाश्री : ऐसा है न, अर्थ तो किसे कहते हैं? जो समतोल हो, उसे अर्थ कहते हैं। यदि दस रतल इस तरफ है तो उस तरफ भी दस रतल होना चाहिए। जबकि इस तरफ श्रद्धा, प्रज्ञा और चेतन दस रतल हैं तो उस तरफ डेढ़ रतल हैं, तीनों ही (faith, reason, consciousness)।
प्रश्नकर्ता : तो इम्बैलेन्स (असंतुलन) हो गया।
दादाश्री : अर्थात् डेढ़ रतल (पाउन्ड/454 ग्राम) मतलब वह स्थूल वस्तु है जबकि यह दस रतल यथार्थ वस्तु है। अर्थात् यह डेढ़ रतल है और वह दस रतल।
प्रश्नकर्ता : लेकिन आपने क्या कहा था? जो चेतन है, उसी के दो भाग हैं-श्रद्धा और प्रज्ञा।
दादाश्री : नहीं, श्रद्धा तो उसका मूल स्वभाव ही है। जब वह प्रतीति में आता है तब श्रद्धा के रूप में होता है और तब प्रज्ञा अलग हो जाती है और प्रज्ञा खुद का कार्य पूरा करने के बाद एकाकार हो जाती है। प्रज्ञा, अज्ञा का नाश करने के लिए है। प्रज्ञा में अज्ञा का नाश करने का गुण है लेकिन अलग होकर अज्ञा का नाश करने के बाद वह तुरंत आत्मा में मिल जाती है। अतः प्रज्ञा तो खुद ही आत्मा है लेकिन क्योंकि वह अलग हो जाती है इसलिए उसे प्रज्ञा कहा गया है।
प्रश्नकर्ता : तो इसमें बेस है श्रद्धा। जिसे आप प्रतीति कहते हैं, वह।
दादाश्री : हाँ, प्रतीति बेस है। इसका मतलब उसे इस जगत् की उल्टी प्रतीति बैठी है या सीधी, उस अनुसार यह चलेगा। उल्टी प्रतीति इस संसार में भटकाती ही रहती है। यदि प्रतीति सीधी हो जाए तो मोक्ष में ले जाएगी। प्रतीति बैठाने वाले निमित्त की ज़रूरत है।