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आप्तवाणी - १३ (उत्तरार्ध)
अंतरात्मा कहलाएगी। लेकिन अंतरात्मा दशा कब तक है, प्रज्ञा के रूप में कब तक है? जब तक फाइलों का निकाल करना बाकी है, तभी तक। फाइलों का निकाल हो जाने के बाद तो फिर फुल गवर्नमेन्ट अर्थात् परमात्मा।
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ज्ञान, विज्ञान और प्रज्ञा
प्रश्नकर्ता : तो ज्ञान, विज्ञान और प्रज्ञा, इन तीनों के बीच में क्या भेद है ?
दादाश्री : ज्ञान अर्थात् जो खुद को करना पड़े। जितना जानते हैं उतना खुद को करना पड़ता है और विज्ञान अपने आप ही हो जाता है, हमें करना नहीं पड़ता और प्रज्ञा इन दोनों के बीच की स्थिति है। एक बार आप वैज्ञानिक तरीके से समझ गए कि इस दवाई को पीने से इंसान मर ही जाता है तो आप वापस कभी भी वह दवाई नहीं पीओगे। अगर वैज्ञानिक तरीके से समझ लोगे तो ! और यों ही अगर कोई आपसे कहे कि यह दवाई पोइज़नस है और इस दवाई से मर जाते हैं तो भी इंसान पी लेता है। अतः जो ज्ञान क्रियाकारी है, वह वैज्ञानिक ज्ञान कहलाता है। जो ज्ञान क्रियाकारी होता है, स्वयं क्रियाकारी, वह है विज्ञान । और जो ज्ञान क्रियाकारी नहीं है, खुद को करना पड़ता है, वह ज्ञान है । 'दया रखो, शांति रखो', वह करना पड़ता है। वह फिर खुद से हो नहीं पाता, वह ज्ञान कहलाता है ।
अतः शास्त्रों में ज्ञान है, शास्त्रों में विज्ञान नहीं है। शास्त्रों में शास्त्रज्ञान है जबकि यह विज्ञान है इसलिए चेतन ज्ञान अंदर काम करता रहता है, वह ज्ञान ही काम करता रहता है जबकि शास्त्रों का ज्ञान चाहे कितना भी पढ़ो, रटो, लेकिन वह काम नहीं करता। हमें करना पड़ता है, जबकि यह विज्ञान तो अपने आप ही काम करता रहता है। अंदर से जागृति देता है, सबकुछ अपने आप ही होता रहता है । आपमें करता है न, सबकुछ अपने आप ? उसे कहते हैं विज्ञान | विज्ञान का अर्थ क्या है ? चेतन ज्ञान, जो ज्ञान चेतन है, जो जागृति सहित है, वही विज्ञान है