________________
[१] प्रज्ञा
दादाश्री : बोलता है टेपरिकॉर्डर लेकिन भाव प्रज्ञा का है । प्रश्नकर्ता : तो क्या वह प्रज्ञा की सहज क्रिया है ?
६७
दादाश्री : प्रज्ञा की सभी क्रियाएँ सहज ही होती हैं, स्वाभाविक । शुद्धात्मा, प्रतिष्ठित आत्मा और प्रज्ञा
प्रश्नकर्ता : शुद्धात्मा और प्रतिष्ठित आत्मा के बीच संबंध प्रज्ञा के माध्यम से है न ?
दादाश्री : दोनों का संबंध ? हमें प्रज्ञा से संबंध है । (जिन्होंने ज्ञान नहीं लिया है) उन लोगों में प्रज्ञा है ही नहीं। उनमें अज्ञा के माध्यम से संबंध है।
प्रश्नकर्ता : आत्मा के साथ अज्ञान का संबंध है क्या ?
दादाश्री : आत्मा को अज्ञान स्पर्श कर ही नहीं सकता न ! प्रकाश को अंधेरा छू कैसे पाएगा? वह तो आधार रहित है जबकि यह (आत्मा) तो खुद के आधार पर खड़ा है।
प्रश्नकर्ता: खुद के अर्थात् क्या ?
दादाश्री : अर्थात् खुद के गुणधर्मों के आधार पर। पुद्गल खुद के गुणधर्मों के आधार पर । प्रतिष्ठित आत्मा यानी पावर । पावर वाला खत्म हो जाएगा जबकि मूल 'वस्तु' को कुछ भी नहीं होता। बस, इसके अलावा कुछ भी नहीं है ।
प्रश्नकर्ता : यह प्रतिष्ठित आत्मा मूल वस्तु में से उत्पन्न हुआ है ?
दादाश्री : हाँ, लेकिन ऐसा संयोगवश हुआ।
प्रश्नकर्ता : जो प्रकृति को जानता है और प्रकृति के आधार पर चलता है, वह कौन है ?
दादाश्री : वह अहंकार है, बस । प्रकृति को जानता है। जब उस पर सोचने बैठता है तब सभी कुछ जानता है ।