________________
[१] प्रज्ञा
७१
प्रश्नकर्ता : प्रज्ञा खटपट करवाती है ।
दादाश्री : हाँ, और जिनमें प्रज्ञा नहीं है, वे खटपट नहीं करते। आप दर्शन करने जाओ और उन्हें दिखाई दे कि आपका अहित होने वाला है, तब भी कुछ नहीं कहेंगे । इमोशनल नहीं होंगे उस समय । क्योंकि हम में बुद्धि नहीं है। हमें बुद्धि इमोशनल नहीं करवाती, यह खटपट प्रज्ञा करवाती है । आपके हिताहित की बात करते हैं इसलिए हम खटपटिया कहलाते हैं। हमारी खटपट कैसी है कि 'जो सुख मुझे मिला वह सभी को प्राप्त हो', यह है हमारी खटपट । और यदि आप उसकी प्राप्ति के लिए नहीं आते हो तो हम आपसे कहते हैं कि ' भाई कल क्यों नहीं आए थे?' कोई पूछे कि इसमें आपकी क्या गर्ज़ है ? तब कहते हैं, 'यह हमारी खटपट है, गर्ज़ नहीं है'। लोग मुझसे कहते हैं, 'दादा यह खटपट शब्द निकाल दीजिए न ! खराब लगता है'। मैंने कहा, 'नहीं - नहीं ! यही अच्छा लगता है । यही अच्छा है'। देखना तो सही, इसकी कैसी कद्र होगी एक दिन । खटपट शब्द की कद्र होगी एक दिन । पूरा ही 'खटपट' शब्द, जिसके प्रति लोगों को घृणा हो गई है, उसी खटपट शब्द से उन्हें आनंद हो जाएगा । खटपट ऐसी भी होती है, वैसी भी होती है और ऐसी भी होती है ।
कृपा का रहस्य
प्रश्नकर्ता : दादा भगवान की कृपा और ज्ञानीपुरुष की कृपा, क्या दोनों अलग हैं ? इनमें क्या अंतर है ?
दादाश्री : दादा भगवान की कृपा, मैं जान जाता हूँ कि इस पर अच्छी है और ज्ञानी को कृपा या अकृपा से कोई लेना-देना ही नहीं है न! ऐसा कुछ खास लेना-देना नहीं है न!
प्रश्नकर्ता : ज्ञानी को कृपा से क्यों लेना-देना नहीं है ?
दादाश्री : नहीं, लेकिन दादा भगवान की कृपा उतरने के बाद फिर ज्ञानी को और कोई झंझट नहीं रही न !