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[१] प्रज्ञा
तो सभी जगह रहेगी। प्रज्ञा तो, जब तक मोक्ष में न पहुँच जाएँ, तब तक बाहर रहकर काम करती रहेगी।
प्रश्नकर्ता : यानी उस प्रज्ञा से हम पर कृपा उतरती है।
दादाश्री : हाँ, प्रज्ञा से कृपा उतरती है। तब हमें पता चल जाता है कि कृपा उतरी है इस व्यक्ति पर।
प्रश्नकर्ता : लेकिन क्या फिर प्रज्ञा को वीतरागता में परेशानी नहीं आती?
दादाश्री : प्रज्ञा वीतराग है ही नहीं। प्रश्नकर्ता : प्रज्ञा वीतराग नहीं है?
दादाश्री : हो ही नहीं सकती न! प्रज्ञा तो इन सब का निकाल करने की ही झंझट लेकर आई है। जैसे-तैसे करके, सब समेटकर उसे मोक्ष में ले जाना है। यही उसका काम है।
प्रश्नकर्ता : लेकिन आपकी प्रज्ञा तो बहुत बड़ी है।
दादाश्री : वह तो खूब डेवेलप्ड है लेकिन काम तो उसका भी यही है। हम ऐसा कहते भी हैं कि 'देखो भाई, भगवान की कृपा कम हो गई है तुम पर'।
प्रश्नकर्ता : अर्थात् वह प्रज्ञा की ही बात है?
दादाश्री : हाँ, लेकिन ऐसा भी कहते हैं कि कृपा कुछ कारणों की वजह से कम हो गई है। उन कारणों को बदल दो तो वापस मिलेगी।
प्रश्नकर्ता : लेकिन क्या वे सारी बातें प्रज्ञा की हैं?
दादाश्री : दादा भगवान तो वीतराग ही हैं न! वीतराग को तो ऐसा कुछ भी नहीं है।
प्रश्नकर्ता : तो क्या प्रज्ञा केवलज्ञान होने तक रहती है?