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[5.1] ज्ञान-दर्शन
३०१
m mmm
३१० ३११
परिभाषा रत्नत्रय की
२५८ क्या कमी है महात्माओं में? २७२ आत्मा का दर्शन, अनुभव और... २६० यों अनुभव से प्रकट होता है ज्ञान २७३ आत्मा का अनुभव : तप और चारित्र २६३ क्रमिक में ज्ञान-दर्शन-ज्ञान-चारित्र २७६ दर्शन किसका कहलाता है? २६४ क्रमिक में रिलेटिव में से रियल २७८ सत् में समा जाते हैं ये तीनों ही २६५ अक्रम में स्वयं क्रियाकारी ज्ञान २७९ निज प्रकृति के ज्ञाता-दृष्टा, वही... २६७ गुह्य, गुह्यतर और गुह्यतम ज्ञान २८१ समझ, अनुभव-लक्ष-प्रतीति की २६९
। [5.2] चारित्र वीतरागों का यथार्थ व्यवहार चारित्र २८३ व्यवहार चारित्र भेद, व्यवहार और निश्चय चारित्र का२८४ महात्माओं का चारित्र
३०३ चारित्र की यथार्थ परिभाषा २८६ तब उदय होता है चारित्र का ३०५ क्रमिक में व्यवहार चारित्र से निश्चय... २८७ चारित्र के लक्षण
३०६ मिथ्या ज्ञान-मिथ्या दर्शन-मिथ्या... २८८ तब माना जाएगा कि सम्यक्... ३०८ निश्चय चारित्र जगत् ने देखा ही... २९० परख चारित्र बल की
३०८ वीतरागों का चारित्र है अरूपी २९१ तब आएगा निश्चय में कीमत है निश्चय चारित्र की २९२ निज स्वभाव का अखंड ज्ञान ज्ञाता-दृष्टा, वह वास्तविक चारित्र २९५ दादा का चारित्र
३११ जो चारित्र मोह को देखता है... २९६ समझ, अस्तित्व और चारित्र की ३१३ चारित्र मोहनीय हटने से प्रकट... २९७ मोक्ष का मार्ग एक ही सम्यक् दर्शन की ज़रूरत है नींव... २९८ यथाख्यात चारित्र
३१५ वह है विपरीत ज्ञान... ३०० अंतर, केवल और सम्यक् चारित्र में३१६ नहीं करना है विकास आत्मगुणों... ३०१
[6] निरालंब आधार-आधारित के संबंध से टिका...३१८ आत्मा की खुराक?
३३२ दुनिया में कौन सा आधार... ३१९ मैं, आत्मा और बैठक
३३५ चल भाई, निजघर में
३२० सूक्ष्म दादा, निदिध्यासन के रूप में ३३८ निरालंब आत्मा कैसा होता है? ३२१ ज्ञानी की वाणी ही है अंतिम... ३४२ आलंबन-गुरु या शास्त्रों का? ३२२ भगवान ज्ञानी के वश में योगी को किसका अवलंबन? ३२३ बात को मात्र समझो...
३४३ फिर नहीं बुद्धि का आलंबन ३२४ सभी में 'मैं' को ही देखे, वह... ३४४ जगत् जीवित है आलंबन से ३२४ परावलंबन-आलंबन-निरालंबन निरालंबी दशा ३२६ देह के आलंबन
३४७ मैं ही भगवान हूँ, वह निरालंब ३२७ संज्ञा से मूल आत्मा को पहुँचता... ३४७ 'मैं शुद्धात्मा हूँ', वह शब्दावलंबन ३२८ ज़रा सा ही दूर है राजमहल ३४८ अंत में अनुभव और अनुभवी एक..३३० भगवान महावीर पूर्ण निरालंब ३५० शब्दावलंबन के बाद मोक्ष एक-दो..३३२ अंतर, शुद्धात्मा और परमात्मा में ३५१
३१४
३४२
३४५
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