________________
१२
आप्तवाणी-१३ (उत्तरार्ध)
प्रश्नकर्ता : आप जो समझाते हैं, वह किसे पहुँचता है ? देह को या आत्मा को?
दादाश्री : आत्मा को ही न! पर वह कौन सा आत्मा? जो शुद्धात्मा है, वह नहीं, प्रज्ञा नामक जो शक्ति है, उसके साथ सत्संग चलता रहता है। देह को भी नहीं, देह और आत्मा दोनों के बीच की जो शक्ति है, उसे पहुँचता है। प्रज्ञाशक्ति ही समझती है यह। यहाँ जो समझाते हैं, उसे जो कैच करती है, वह प्रज्ञाशक्ति है।
अंदर जो सावधान करता है, वही है आत्मानुभव
पूरे दिन सावधान करती है, वही प्रज्ञा है। अलग ही करती रहती है। इतना सारा अनुभव, पूरे दिन का अनुभव हमें अलग का अलग ही रखता है। नहीं?!
प्रश्नकर्ता : ठीक है। दादाश्री : एक नहीं होने देती।
प्रश्नकर्ता : जब से प्रज्ञा शुरू हुई है, तभी से आत्मा के अनुभव की शुरुआत हो गई न?
दादाश्री : आत्मा का अनुभव हो ही जाता है। तभी वह सचेत करती है न, वर्ना यह लक्ष (जागृति) में ही नहीं रहता कि 'मैं आत्मा हूँ'। यह तो निरंतर लक्ष में रहता है और निरंतर जागृति ही रहती है। वह लाइट जलती रहती है, लेकिन अगर आप दूसरी जगह पर चले जाओ तो उसमें वह क्या करे? और आज्ञा पालन करे तो निरंतर लाइट रहती ही है। यों विज्ञान को पूरी तरह से समझ ले तो काम का है! अंदर सचेत करती है आपको? ज़रा सा भी इधर-उधर किया तो सचेत करती है।
प्रश्नकर्ता : हाँ, तुरंत ही सावधान करती है अंदर। यह हमारा अनुभव है!
दादाश्री : अब यों जो सचेत करती है, उसमें आपको ऐसा