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आप्तवाणी - १३ (उत्तरार्ध)
आते हैं न आपके यहाँ सुबह पाँच बजे ! वह हमेशा का है न! वे अमरीका वाले भी कहते हैं कि 'मेरे यहाँ आते हैं'। जाते हैं, वह बात तो सही है न!
प्रश्नकर्ता : हाँ, लेकिन वह कौन जाता है ?
दादाश्री : लेकिन यह हकीकत है न कि जाते हैं !
प्रश्नकर्ता: लोगों को अनुभव होता है । यहाँ से जाते हैं, वह मालूम नहीं है, लेकिन उन्हें ऐसा लगता है । वह क्या है ?
दादाश्री : वह सब तो शक्ति है न, प्रज्ञाशक्ति की ज़बरदस्त
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शक्ति !
प्रश्नकर्ता : हम दादाजी का स्मरण करते हैं और दादा हमारे घर पर आकर आशीर्वाद देते हैं, वह क्या है ? वह फिनोमिना (घटना) क्या है ? वह कौन सी प्रक्रिया है ?
दादाश्री : वह सारा प्रज्ञा की प्रक्रिया में जाता है I
प्रश्नकर्ता : हम याद करते हैं और दादा आ जाते हैं, तो तब आपका कुछ अंश आता है या संपूर्ण आता है ?
दादाश्री : वह सारा प्रज्ञा का काम है। दादा जो याद आते हैं न, वह तो आत्मा के तौर पर एक ही स्वभावी हैं । आपका ही आत्मा दादा बनकर काम कर रहा है । अर्थात् यह चीज़ खुद के भाव पर आधारित है और फिर वे भाव प्रज्ञा के होने चाहिए । तब अगर कोई कहे कि ' अज्ञानी लोगों को भी उनके गुरु दिखाई देते हैं'। तो वह चित्त की शुद्धता है !
प्रश्नकर्ता : तो ‘आपकी तरफ से प्रज्ञाशक्ति काम कर रही है ? उन्हें जो अनुभव होता है कि दादा यहाँ पर आए थे, वह आपकी प्रज्ञाशक्ति की वजह से है या उनकी प्रज्ञाशक्ति की वजह से ?
दादाश्री : यह जो प्रज्ञाशक्ति है, उसी में से है । जो 'जाते' हैं, उन्हीं की प्रज्ञाशक्ति है ।
प्रश्नकर्ता : 'जाता' है का मतलब ?