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[१] प्रज्ञा
बातें नहीं देख सकता। अतः जब चित्त शुद्ध हो जाता है तब आत्मा में एक हो जाता है। आत्मा में मिल जाता है, बचा कौन? बीच में कोई नहीं बचा। प्रज्ञाशक्ति चलती रहती है बस। अगर दखल रहे तो वापस शुद्ध चित्त भी बिगड़ता जाता है। अगर अंधेरा हो न, तो वापस बिगड़ता जाता है, तो उसे वापस कहाँ रिपेयर करवाने जाएँ? उसके कारखाने तो कहीं भी नहीं होते। और प्रज्ञाशक्ति को हमें रिपेयर नहीं करना पड़ता। जो वस्तु है, अगर उसे रखा जाए तो रिपेयर करवाने नहीं जाना पड़ेगा। जो वस्तु नहीं है, उसे तो बिगड़ने पर रिपेयर करवाने जाना पड़ेगा। अतः बीच में किसी चीज़ की कोई जरूरत नहीं है। सभी क्रियाएँ प्रज्ञा करती है।
प्रश्नकर्ता : यह चित्त जब शुद्ध हो जाता है, तब प्रज्ञा उत्पन्न होती है न?
दादाश्री : चित्त जब शुद्ध हो जाता है तब शुद्धात्मा में मिल जाता है। उसके बाद प्रज्ञाशक्ति की शुरुआत हो जाती है। शुद्ध चित्त, वही शुद्ध चिद्रूप आत्मा है।
प्रश्नकर्ता : ज्ञानीपुरुष का निदिध्यासन रहता है, उसे आपने प्रज्ञा कहा है तो आप ऐसा भी कहते हैं न कि जितना अधिक निदिध्यासन रहेगा उतना ही चित्त शुद्ध होगा?
दादाश्री : चित्त शुद्धि तो हो चुकी है न !
प्रश्नकर्ता : जड़ से हो गई है संपूर्ण, तो वह जो अशुद्ध चित्त है, उसका क्या होता है?
दादाश्री : अशुद्ध चित्त तो सभी सांसारिक कार्य कर लेता है। मन, बुद्धि, चित्त और अहंकार! क्या शुद्ध चित्त कभी दखल करता है? अशुद्ध चित्त हो तो दखल हो जाती है बीच में। शुद्ध चित्त होगा तो दखल नहीं होगी। यदि तीसरा व्यक्ति होगा तभी दखल होगी। दखल होती है ? आप निदिध्यासन करके आओ कभी।
प्रश्नकर्ता : निदिध्यासन करने में किसकी दखल रहती है ?