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[१] प्रज्ञा
चेतन के साथ जड़ का संयोग हुआ। उस संयोग से विशेष ज्ञान उत्पन्न हुआ। वही है अज्ञाशक्ति ।
प्रश्नकर्ता : अज्ञा और प्रज्ञा, इन दोनों में से किसका चलता है ?
दादाश्री : दोनों का ही चलता है। हर एक के अपने क्षेत्र में, अपने-अपने क्षेत्र में दोनों का ही चलता है ।
प्रश्नकर्ता : प्रज्ञा और प्रतिष्ठित आत्मा में फर्क है क्या ?
दादाश्री : बहुत फर्क है । प्रतिष्ठित आत्मा तो यह जो 'चंदूभाई' है, वह है और प्रज्ञा तो आत्मा का एक विभाग है।
प्रश्नकर्ता : प्रज्ञा का उद्भव स्थान कौन सा ?
दादाश्री : उसका कोई स्थान नहीं होता, उसका तो काल (समय) होता है । जिस समय मिथ्यात्व फ्रेक्चर हो जाता है, तब प्रज्ञा हाज़िर हो
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जाती है। बुद्धि पर आघात लगे तो हाज़िर हो जाती है।
प्रश्नकर्ता : कई बार बातचीत में हम ऐसे शब्दों का उपयोग करते हैं न कि प्रज्ञा आत्मा का ही भाग है ।
दादाश्री : हाँ, वह तो है ही न !
प्रश्नकर्ता : आत्मा का भाग है ?
दादाश्री : आत्मा का भाग, उसका ऐसा अर्थ नहीं निकालना है । आप अपनी भाषा में ले जाते हो सभी बातें ।
वह उसका स्वभाव है कि किसी काल का संयोग हुआ कि प्रज्ञा खुद उत्पन्न हो जाती है और फिर मोक्ष में पहुँचाकर लय हो जाती है। यह अज्ञा भी उत्पन्न हुई है और लय हो जाएगी। जब प्रज्ञा उत्पन्न होती है, अज्ञा लय हो जाती है । जैसे कि अंधेरे के बाद दिन (उजाला) आता है।
तब
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प्रज्ञा जड़ है या चेतन ?
प्रश्नकर्ता : तो प्रज्ञा में थोड़ा-बहुत विकल्प का भाग है न ?