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दस लाख सालों बाद प्रकट हुए हैं ये अक्रम ज्ञानी!
मैं, बावा और मंगलदास का ज़बरदस्त विज्ञान निकला है। यह अंतिम विज्ञान है। जैसे कि मीठे पानी के बरसात से सारा ही धान उग निकलता है, उस जैसा!
'मैं, बावा और मंगलदास' की बात पहली बार ही प्रकट हो रही है। दादाश्री के हृदय में सालों से यह व्यथा थी कि किस तरह से यह गुह्य विज्ञान सभी को समझाऊँ ?! उस प्रकार मंथन करते-करते 'मैं' 'बावो' और 'मंगलदास' के रूप में निकला और सब सेट हो गया! जगत् के भी ज़बरदस्त पुण्य हैं कि दादाश्री देह छोड़ने से पूर्व यह गुह्य ज्ञान बताते गए! धन्य है उन महात्माओं को जिन्होंने प्रत्यक्ष मैं, बावो और मंगलदास का यह सत्संग सुना और धन्य-धन्य है उन सभी महात्माओं को जिनकी जागृति में यह ज्ञान निरंतर सेट हो गया है!
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