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चारित्र बलवान होने की परख क्या है? किसी के साथ टकराव में न आए, मन से भी नहीं, एडजस्ट एवरीव्हेर। मन-बुद्धि-चित्त-अहंकार, किसी भी तरह से न टकराए। दखल न हो, मुँह न चढ़े, किसी को दुःख न हो। टकराव के बाद प्रतिक्रमण कर ले, तो वह चारित्र कहलाएगा? नहीं, वह चारित्र में जाने की निशानी है।
शीलवान तो पूर्ण चारित्र वाला होता है।
किसी भी संयोगों में अंदर से 'देखना-जानना' ही रहे तब वह निश्चय की हद में आ गया। कोई मामा की बेटी को उठा ले जाए तो नाटक सभी करता है बचाने का लेकिन अंदर से निर्लेप ही रहता है।
दादाश्री कहते हैं कि हमारा चारित्र बहुत उच्च है। सम्यक् चारित्र में, ज्ञान-अज्ञान एक न हो जाएँ, उसके लिए पुरुषार्थ है। केवलचारित्र तो केवलज्ञान के बाद में ही हो सकता है। सहज होता है, केवलज्ञानी को केवलचारित्र बरतता है।
दादा का चारित्र सफल चारित्र है। आत्मज्ञानी का चारित्र देखने को मिल जाए तो भी बहुत है। देखने से ही उस रूप होते जाते हैं। फिर भी दादाश्री कहते हैं कि हमारा चारित्र पिछले जन्म का परिणाम है, यह पूर्ण नहीं है।
भगवान महावीर ने कहा है कि ज्ञान-दर्शन-चारित्र इन्द्रिय प्रत्यक्ष नहीं हैं।
आज अस्तित्व सौ पर है लेकिन दिखाई देने वाला चारित्र अठानवे पर है। अस्तित्व इस जन्म का है और जो दिखाई देता है वह चारित्र पिछले जन्म का है।
प्राप्ति का मार्ग एक ही है विचार श्रेणी अलग-अलग होती है और वह हर एक की प्रकृति की भिन्नता के कारण है, बाकी प्रकाश में कोई अंतर नहीं होता। क्रमिक में ज्ञान-दर्शन और चारित्र होते हैं। अक्रम में दर्शन-ज्ञान और चारित्र है। केवलज्ञान प्रकाश तो सभी में एक सरीखा ही है। अक्रम का तरीका महा पुण्यशालियों को प्राप्त होता है। यह तरीका एकदम आसान और सरल है।
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