Book Title: Anandrushi Abhinandan Granth
Author(s): Vijaymuni Shastri, Devendramuni
Publisher: Maharashtra Sthanakwasi Jain Sangh Puna
View full book text
________________
[] डा० कुमारी ज्योति साकले, एम. बी. बी. एस. [युवापीढ़ी की चिंतनशील लेखिका तथा सेवाभावी चिकित्सिका, अमरावती
श्रमण-परम्परा के नीलगगन में चमकता चय एक इन्द्रधनुषी व्यक्तित्व :
आचार्यप्रवर श्री आनन्दऋषि
ANA
वर्षा से पूर्व या वर्षा के पश्चात् जब कभी नीलगगन में इन्द्रधनूष की मनोहर छटा छितराती है तो दर्शक मुग्ध होकर देखते रहते हैं, उस सुरम्य दृश्य को देखते-देखते आँखें अघाती नहीं, मन भरता नहीं और हृदय की उत्सुकता कम नहीं होती । बार-बार उस नयन-मोहन छवि को देखने हृदय उछालें भर-भर उमगता है, आँखें लपकती हैं। कभी उस इन्द्रधनुष में चार रंग दीख पड़ते हैं, कभी पाँच, कभी सात । वास्तव में उसमें कितने रंग हैं, आँखें निश्चय नहीं कर पातीं, बस उसके रम्य-रंगों को देखते-देखते ही मन विभोर होता रहता है।
जनश्रमण आचार्यप्रवर आनन्दऋषि जी के व्यक्तित्व का दर्शन करते समय भी मन में इसी प्रकार की भावनाएँ उमगती हैं । जब-जब ज्ञान की आँखों में श्रद्धा की ज्योति जगती है और आचार्यश्री के स्वच्छ, सौम्य, धवल-वेश-परिमंडित देह के भीतर एक दिव्य व्यक्तित्व की प्रतिमा का दर्शन करते हैं--- तो सचमुच ऐसा ही लगता है। उनका व्यक्तित्व कितने रमणीय रंगों में रंगा है, कह पाना कठिन है। समझ पाना भी कठिन है, सिर्फ अनुभूति होती है। उनके विविध सुरम्य रूपों को देखकर कभी लगता हैआचार्यश्री सरलता की साकार मूर्ति हैं, विनम्रता के पुंज हैं। कभी-कभी उनकी दिव्य ज्ञान-साधना की छवि के दर्शन होते हैं तो लगता है—ज्ञान का अथाह सागर ठाठे मार रहा है, असंख्य-असंख्य ज्ञानउर्मियां उछल रही हैं । विविध भाषाओं का परिज्ञान, दर्शन और धर्म की सूक्ष्मातिसूक्ष्म धारणाओं का विवेचन बुद्धि को चकित कर देता है।
उनसे बात करते समय लगता है-वाणी मिश्री-से भी मीठी है, माधुर्य छलक रहा है । शब्दों का विवेक बड़ा गहरा है, भाषा का संयम बड़ा ही सूक्ष्म है। जो कुछ बोलते हैं-हियं, मियं, अदुट्ठ-हितकर, मिताक्षर और सुन्दर बोलते हैं। कोई धाराशास्त्री (वकील) भी उनकी वाणी को कानून के कांटों से पकड़ नहीं सकता । शब्दों में सार, भाषा में भाव और माधुर्य यों छलकता है जैसे अंगूरों के गुच्छे हों। वे सच्चे वाग्मी हैं, वागीश्वर हैं।
वे अनुशासनप्रिय हैं, स्वयं गुरुचरणों के कठोर अनुशासन में रहकर शिक्षा और संस्कारों की
प्ति की है, इसलिए एक सैनिक की भाँति न केवल स्वयं अनुशासित जीवन जीते हैं, किन्तु दूसरों को भी अनुशासन की प्रेरणा देते रहते हैं-वाणी से कम, व्यवहार से ही अधिक ! उनका जीवन अनुशासन की जीती-जागती तस्वीर है।
या
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org