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षड्दर्शन समुञ्चय भाग-२, श्लोक-४५-४६, जैनदर्शन
समुद्र में कितने प्रमाण में पानी है, वह प्रमेय = प्रमाण का विषय तो है ही। "उपरांत जो वस्तु सत् होती है, वह किसी प्रमाण का विषय तो निश्चित होती ही है।" सामान्यतः ऐसा नियम है। इसलिए समुद्र के पानी के जत्थे का माप सत् होने से किसी प्रमाण का विषय बनता ही है। इसलिए प्रमेयत्व हेतु असिद्ध नहीं है। शायद मान ले कि समुद्र के पानी के जत्थे का माप प्रत्यक्षादि पांच प्रमाण का विषय नहीं बनता है। फिर भी जहाँ प्रत्यक्षादि पांच प्रमाण की प्रवृत्ति न हो, वहाँ अभाव प्रमाण की प्रवृत्ति तो अवश्य होती ही है। इसलिए प्रमेय अभाव प्रमाण का विषय तो निश्चित बनता ही है। ऐसा तो आप भी मानते ही हो । इसलिए प्रमेयत्व हेतु असिद्ध नहीं है। ___ यदि समुद्र के पानी के जत्थे के माप में प्रत्यक्षादि पांच प्रमाण की अप्रवृत्ति होने पर भी अभाव प्रमाण की भी प्रवृत्ति न हो तो अभाव प्रमाण व्यभिचारी बन जायेगा, क्योंकि जहां प्रत्यक्षादि पांच प्रमाण की अप्रवृत्ति नहीं होती वहां अभावप्रमाण की प्रवृत्ति तो होती ही है। यह नियम तूट जाता है। इसलिए समुद्र के पानी के जत्थे का माप प्रमेय होने से उसका साक्षात्कार करनेवाला कोई-न-कोई तो होना ही चाहिए और समुद्र के पानी के जत्थे के माप का प्रत्यक्ष जिन को होता है, वह सर्वज्ञ भगवान है।
अब सर्वज्ञ की सिद्धि के लिए तीसरा अनुमान देते है । "कोई आत्मा अतीन्द्रिय पदार्थो का साक्षात्कार करनेवाला है। क्योंकि वह उपदेश (शास्त्र) और अविसंवादिलिंग ( = अनुमापक हेतु) के बिना भी चन्द्रग्रहण इत्यादि ज्योतिष का यथार्थ उपदेश देता है।
जो व्यक्ति जिस विषय में शास्त्र और अनुमापक हेतुओ के बिना उपदेश देता है। वह व्यक्ति उस विषय का साक्षात्कारी होता है। जैसे कि, कोई घट आदि पदार्थो को प्रत्यक्ष देखकर, उसका यथार्थ वर्णन करनेवाले हम लोग।
कहने का मतलब यह है कि, कुछ खास दिन में, कुछ खास घण्टे में, कुछ खास मिनिट में चन्द्रग्रहण होगा इत्यादि ऐसे भाविकालविषयक अतीन्द्रियपदार्थोका साक्षात्कार करनेवाले सर्वप्रथम श्री जिनेश्वर परमात्मा है। इसलिए अतीन्द्रियपदार्थो को देखनेवाले सर्वज्ञ है।
उपरांत, आपने जो कहा था कि "सर्वज्ञ में प्रत्यक्षादि पांच प्रमाणो की प्रवृत्ति का अभाव होने से सर्वज्ञ अभावप्रमाण का विषय बनता है । अर्थात् सर्वज्ञ का अभाव है।" वह भी युक्तियुक्त नहीं है, मात्र प्रलाप ही है। क्योंकि सर्वज्ञ की सिद्धि में प्रत्यक्षादि पांच प्रमाणो की अप्रवृत्ति असंभवित है। क्योंकि (पहले देखे उस अनुमान प्रमाण से सर्वज्ञ की सिद्धि होती होने से किस तरह से कहा जा सकेगा कि प्रत्यक्षादि पांच प्रमाणो कि अप्रवृत्ति है ?) प्रत्यक्षादि प्रमाण की अप्रवृत्ति तो उस पदार्थों में होती है कि जिस प्रमाणो के द्वारा उस पदार्थों में बाध आता हो । सर्वज्ञ में कोई भी प्रमाण बाधा करनेवाला नहीं है। इसलिए सर्वज्ञ की सत्ता निर्बाध है।
आप कहो कि सर्वज्ञ का बाध करनेवाला (१) प्रत्यक्ष, (२) अनुमान, (३) आगम, (४) उपमान और (५) अर्थापत्ति, इन पांच प्रमाण में से कौन सा प्रमाण है ?
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