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वियाहपण्णत्ति महावीर और आर्यरोह में लोक अलोक के संबंध में प्रश्नोत्तर होते हैं। अंडे और मुर्गी में पहले कौन पैदा हुआ ? इस प्रश्न के उत्तर में कहा है कि दोनों पहले भी हैं और पीछे भी । महावीर के शिष्य और पार्श्व के अनुयायी आर्य कालासवेसियपुत्त में प्रश्नोत्तर होते हैं और कालासवेसियपुत्त चातुर्याम धर्म का त्याग कर पंच महाव्रत स्वीकर करते हैं। दूसरे शतक में भी दस उद्देशक हैं। यहाँ कात्यायनगोत्रीय आर्यस्कंदक परिव्राजक के आचार-विचारों का विस्तृत वर्णन है। यह परिव्राजक चार वेदों का सांगोपांग वेत्ता तथा गणित, शिक्षा, आचार, व्याकरण, छंद, निरुक्त और ज्योतिषशास्त्र का पंडित था । श्रावस्ती के वैशालिकश्रावक (महावीर के श्रावक ) पिंगल और स्कंटक परिव्राजक के बीच लोक आदि के संबंध में प्रश्नोत्तर होते हैं। अन्त में स्कंदक महावीर के पास जाकर श्रमणधर्म में दीक्षा ले लेते हैं, और विपुल पर्वत पर संलेखना द्वारा देह त्याग करते हैं। तुंगिका नगरी के श्रमणोपासकों का वर्णन पढ़िये
तत्थ णं तुंगियाए नयरीए बहवे समणोवासया परिवंसति अड्ढा, दित्ता, वित्थिन्नविपुलभवण-सयणासण-जाण वाहणाइण्णा, बहुधण-बहुजायसव-रयया, आयोग-पयोगसंपउत्ता, विच्छड्डियविपुः लभत्त-पाणा, बहुदासी-दास-गो-महिस-गवेलयप्पभूया, बहुजणस्स अपरिभूया, अभिगयजीवाजीवा, उवलद्धपुण्ण-पावा, आसव-संवरनिज्जर-किरिया-ऽहिकरणबंध-मोक्खकुसला, असहेज्जदेवासुरनागसुवरण-जक्ख-रक्खस-किन्नर-किंपुरुस-गरुल-गंधव्व महोरगाईएहिं देवगणेहिं निग्गंथाओ पावयणाओ अणतिकमणिज्जा, णिग्गंथे पावयणे निस्संकिया, निकंखिया, निवितिगिच्छा, लद्धट्ठा, गहियट्ठा, पुच्छियट्ठा, अभिगयट्ठा, विणिच्छियट्ठा, अद्विमिंजपेमाणुरागरत्ता, अयमाउसो ! निग्गंथे पावयणे अढ़े, अयं परमठे, सेसे अणळे, असियफलिहा, अवंगुयदुवारा, चियत्ततेउरघरप्पवेसा बहूहिं सीलव्वय-गुण-वेरमण-पञ्चक्खाण-पोसहो-ववासेहिं चाउद्दसहमु-दि-पुण्णमासिणीसु परिपुण्णं पोसहं सम्म अणुपालेमाणा,