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मूत्रकृतांगचूर्णी
२३७ इसलिए रुष्ट होकर अब उन्होंने अपने श्वसुर की परिचर्या करना बिलकुल ही बन्द कर दिया। तत्पश्चात् आपस में सलाह कर के उन्होंने अपने पतियों से कहा-देखिये, हमलोग बराबर श्वसुरजी की सेवा-शुश्रूषा करती हैं, लेकिन वे इस बात को आप लोगों से कभी नहीं कहते । इसके बाद वे कुछ दिन तक अपने श्वसुर की सेवा करती रहीं। एक दिन बूढ़े के पुत्रों ने अपने पिता जी से फिर पूछा। बूढ़े ने पहले जैसे ही बड़े रोष के साथ कहा कि अरे भाई ! वे तो कुछ भी नहीं करतीं यह सुनकर बहुएँ कहने लगीं, "यह बूढ़ा हमसे द्वेष रखता है। हमलोग इसकी इतनी सेवा करती हैं, फिर भी यह झूठ बोलता है। सचमुच यह बड़ा कृतघ्न है।
गोल्लदेश (गोदावरी के आसपास का प्रवेश) के रीतिरिवाजों का अनेक जगह उल्लेख किया गया है। गोल्ल में चैत्र महीने में शीत पड़ता है; यहाँ आम की फांक करके उन्हें धूप में सुखाते हैं जिसे आम्रपान कहते हैं। कुंभीचक्र को इस देश में असवत्तअ कहा जाता है। कोंकण देश का भी यहाँ उल्लेख है जहाँ निरन्तर वर्षा होती रहती है। मनुस्मृति (४.८५) और महाभारत (१३-१४१-१६) के श्लोक यहाँ उद्धृत हैं ।
सूत्रकृतांगचूर्णी इस चूर्णि' में नागार्जुनीय वाचना के जगह-जगह पाठांतर दिये हैं । यहाँ अनेक देशों के रीति-रिवाज आदि का उल्लेख है। उदाहरण के लिये, सिन्धु देश में पण्णत्ती का स्वाध्याय करने की मनाई है। गोल्ल देश में यदि कोई किसी पुरुष की हत्या कर दे तो वह किसी ब्राह्मणघातक के समान ही निन्दनीय समझा जाता है । ताम्रलिप्ति आदि देशों में डांसों की अधिकता
१. रतलाम से सन् १९४१ में प्रकाशित । मुनि पुण्यविजयजी इसे संशोधित करके पुनः प्रकाशित कर रहे हैं। इसके कुछ मुद्रित फर्मे उनकी कृपा से मुझे देखने को मिले।