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३६६ प्राकृत साहित्य का इतिहास नाम का राजा सिंहलद्वीप की कन्या रत्नवती के रूप की प्रशंसा सुनकर उस पर मुग्ध हो जाता है ! राजा का मंत्री एक जोगिनी का रूप बनाकर सिंहलद्वीप पहुँचता है और राजकुमारी से मिलता है। तत्पश्चात् राजा वहाँ तक्रीड़ा करने के लिये कामदेव के मंदिर में जाता है। दोनों की दृष्टि एक होती है, परस्पर प्रश्नोत्तर होते हैं और अन्त में वियोग संयोग में परिणत हो जाता है।' तरंगवती, मलयवती और मगधसेना के साथ, बन्धुमती और सुलोचना नामक कथाग्रंथों का भी उल्लेख जैन विद्वानों ने किया है। ये प्रेमाख्यान शृंगाररस-प्रधान रहे होंगे, दुर्भाग्य से अभी तक ये अनुपलब्ध हैं। इससे यही सिद्ध होता है कि जैन आचार्यों द्वारा लिखे गये कथा-ग्रंथ यद्यपि धर्मकथा को मुख्य मानकर ही लिखे गये, लेकिन अपनी रचनाओं को लोकप्रिय बनाने के लिये प्रेम और श्रृंगार को भी उन्होंने इन रचनाओं में यथेष्ट स्थान दिया।
विविध वर्णन किसी लौकिक महाकाव्य या उपन्यास की भाँति प्राकृत कथा-ग्रंथों में भी ऋतुओं, वन, अटवी, उद्यान, जलक्रीडा, सूर्योदय, चन्द्रोदय, सूर्यास्त, नगर, राजा, सैनिकों का युद्ध, भीलों का आक्रमण, मदन महोत्सव, सुतजन्म, विवाह, स्वयंवर, स्त्रीहरण, जैन मुनियों का नगरी में आगमन, दीक्षाविधि आदि विषयों का सरस वर्णन उपलब्ध होता है। उद्योतनसूरि ने कुवलयमाला में विजया नगरी के किसी छात्रों के मठ का अत्यंत स्वाभाविक चित्रण किया है। इस मठ में लाट, कर्णाटक, महाराष्ट्र, श्रीकंठ, सिंधु, मालव, सौराष्ट्र आदि दूर-दूर देशों से आये हुए छात्र लकुटियुद्ध, बाहुयुद्ध, आलेख्य, गीत, नृत्य, वादिन और भांड आदि विद्याओं की शिक्षा प्राप्त किया करते थे। ये बड़े दुर्विनीत
1. मलिकमुहम्मद जायसी का पद्मावत इस प्रेमाख्यान काव्य से प्रभावित जान पड़ता है।