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कहारयणकोस
४५१ का वध करने से, सौगत करुणावृत्ति से, शैवमतानुयायी दीक्षा से, स्नातक स्नान से और कपिल मतानुयायी तत्वज्ञान से मुक्ति स्वीकार करते थे, जैन शासन में रत्नत्रय से मुक्ति स्वीकार की गई है। शिव, ब्रह्मा, कृष्ण, बौद्ध और जैनमत के अनुयायी अपने-अपने देवों का वर्णन करते हैं। जिनबिंबप्रतिष्ठा की विधि बताई गई है। इस विधि में अनेक फल और पकवान वगैरह जिनेन्द्र की प्रतिमा के सामने रक्खे जाते और धृत-गुड़ का दीपक जलाया जाता । अर्थहीन पुरुष की दशा का मार्मिक चित्रण देखिये
परिगलइ मई मइलिजई जसो नाऽदरंति सयणा वि । आलस्सं च पयट्टइ विप्फुरइ मणम्मि रणरणओ। उच्छरइ अणुच्छाहो पसरइ सव्वंगिओ महादाहो । किं किं व न होइ दुहं अत्थविहीणस्स पुरिसस्स ॥'
-धन के अभाव में मति भ्रष्ट हो जाती है, यश मलिन हो जाता है, स्वजन भी आदर नहीं करते, आलस्य आने लगता है, मन उद्विग्न हो जाता है, काम में उत्साह नहीं रहता, समस्त अंग में महा दाह उत्पन्न हो जाता है । अर्थविहीन पुरुष को कौनसा दुख नहीं होता? ___ वाममार्ग में निपुण जोगंधर का वर्णन है। मृतकसाधन मंत्र उसे सिद्ध था। लोग वटवासिनी भगवती की पूजाउपासना किया करते थे। अनशन आदि से उसे प्रसन्न किया जाता था। उसे कटपूतना, मृतक को चाहनेवाली और डाइन
१. तुलना कीजिये मृच्छकटिक (१-३७) के निम्न श्लोक से जिसमें निर्धनता को छठा महापातक बताया है
संगं नैव हि कश्चिदस्य कुरुते संभाषते नादरा-। संप्राप्तो गृहमुत्सवेषु धनिनां सावज्ञमालोक्यते ॥ दूरादेव महाजनस्य विहरत्यल्पच्छदो लज्जया । मन्ये निर्धनता प्रकाममपरं षष्ठं महापातकम् ॥