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पासनाहचरिय
५४६ कर मंत्र का स्मरण करने लगा। यहाँ चंडिका के आयतन का भी उल्लेख है जिसे पुरुष की बलि देकर संतुष्ट किया जाता था । उसके ऊपर पानी भर कर लटकाये हुए घड़े में से पानी चूता रहता था। बनारस के ठग उस समय भी प्रसिद्ध थे । वेदों का पाठ करने से भिक्षा मिल जाती थी। यानपात्र में माल भर कर, समुद्र-देवता की पूजा-उपासना कर शुभ मुहूत्ते में समुद्रयात्रा की जाती थी। विवाह के अवसर पर अग्नि में आहुति दी जाती, ब्राह्मण लोग मंत्रपाठ करते तथा कुलस्त्रियाँ मंगलगान करती थीं । भद्र, मन्द और मृग नाम के हाथियों के तीन प्रकार गिनाये हैं। उत्तम हाथी का दाम सवा लाख रुपया होता था। पुत्रोत्पत्ति की इच्छा से कुश की शय्या पर बैठकर दस राततक कुलदेवी भगवती की आराधना की जाती थी। गोल्ल देश का यहाँ उल्लेख है। विवाह की भाँवरें पड़ते हुए यदि चौथा फेरा समाप्त होने के पूर्व ही कन्या के वर की मृत्यु हो जाय तो कन्या का पुनर्विवाह हो सकता था। मृतक की हड्डियाँ गंगा में बहाने का रिवाज था। यहाँ हस्तितापसों का उल्लेख है। ये लोग हाथी को मार कर बहुत दिनों तक उसका मांस भक्षण करते थे। इनकी मान्यता थी कि अनेक जीवों के वध करने की अपेक्षा एक जीव का वध करना उत्तम है; थोड़ा सा दोष लगने पर यदि बहुत से गुणों की प्राप्ति होती हो तो उत्तम है, जैसे कि उँगली में सांप के काट लेने पर शेष शरीर की रक्षा के लिये उँगली का उतना ही हिस्सा काट दिया जाता है। भैरवों को कात्यायनी का मंत्र सिद्ध रहता था। वे लोग शशि और रवि के पवनसंचार को देखकर फलाफल बताते थे। भैरव ने तिलकसुंदरी को नीरोग करने के लिए एक कुमारी कन्या को स्नान कराकर, श्वेत दुकूल के वस्त्र पहना, उसके शरीर को चंदन से चर्चित कर मंडल के ऊपर बैठाया।'
१. नेपाल में हिरण्यगर्भ आदि के मंदिरों में आज भी कुमारी कन्या