Book Title: Prakrit Sahitya Ka Itihas
Author(s): Jagdishchandra Jain
Publisher: Chaukhamba Vidyabhavan

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Page 768
________________ अलंकार ग्रन्थों में प्राकृत पद्यों की सूची वहलतमा हयराई अज पउत्थो पई घरं सुन्नं । तह जग्गिज सयज्झय ! न जहा अम्हे मुसिजामो ॥ ( काव्या० पृ० ५३, १५; गा० स०४, ३५ ) अभागी रात घोर अंधकारमय है, पति आज परदेश गया है, घर सूना पड़ा है । पड़ोसिन ! तू जागते रहना जिससे घर में चोरी न हो जाये ! ( नायिका के पड़ोस में रहने वाले उपपति के प्रति यह उक्ति है । ) बहुवल्लहस्स जा होइ वल्लहा कह वि पञ्चदिअहाई । सा किं छटं मग्गइ कत्तो मिटुं च बहुअं च ॥ ७६१ ( स० कं० ५, ४४६; गा० स० १,७२ ) जो अनेक स्त्रियों का प्रिय है उसका प्रेम किसी वल्लभा पर अधिक से अधिक पाँच दिन तक हो सकता है । क्या वह वल्लभा उससे छठे दिन का (प्रेम) मांग सकती है ? ठीक है, मीठी चीज बहुत नहीं मिलती । ( समुच्चय अलङ्कार का उदाहरण ) बाल ! णाहं दूती तुअ पिओसि त्ति ण मह वावारो । सा मरइ तुज्झ अअसो एअं धम्मक्खरं भणिमो ॥ ( साहित्य० पृ० ७९०; अलंकार सर्वस्व ११५ ) हे नादान ! मैं दूती नहीं हूँ । तुम उसके प्रिय हो, इसलिये भी मेरा उद्यम नहीं है । मैं केवल यही धर्माक्षर कहने आई हूँ कि वह मर जायेगी और तुम अपयश के भागी होगे । बालत्तणदुल्ललिआए अज्ज अगज्जं किं अ णववहूए । भाआमि घरे एआइणि त्ति र्णितो पई रुद्धो ॥ (स०कं०५, ३८४) बालत्व के कारण दुर्ललित नववधू ने आज अनार्योचित कार्य किया । उसने यह कह कर जाते हुए पति को रोक दिया कि मुझ अकेली को घर में डर लगता है । (परिणीत ऊढ़ा का उदाहरण ) भ भोदु सरस्सई कइणो नन्दन्तु वासाइणो । अण्णापि परं पदु वरा वाणी छइल्लप्पिया ॥ च्छोभी तह माही फुरदु णो सा किं अ पंचालिआ । रीदियो विलहन्तु कवकुसला जोहं चओरा विव ॥ (स० कं० २, ३८५ कर्पूर० १-१ ) सरस्वती का कल्याण हो, व्यास आदि कवि आनंदित हों, कुशल जनों के लिये श्रेष्ठ वाणी दूसरों के लिये भी प्रवृत्त हो, वैदर्भी और मागधी हम में स्फुरायमान हो, तथा जैसे चकोर ज्योत्स्ना को चाहता है वैसे ही काव्यकुशल लोग पांचालिका रीति का प्रयोग करें। भम धम्मिय ! वीसत्यो सो सुणओ. अज्ज मारिओ तेण ।. गोलाइकच्छुकुडंगवासिना दरियसीहेण ॥ ( काव्या० पृ० ४७, १३; साहित्य पृ० २४२; ध्वन्या० उ० १ पृ० १९; काव्यप्रकाश ५, १३८; रस गं० १ पृ० १५; गा० स०२, ७५ दशरूपक प्र० ४ पृ० २२८

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