Book Title: Prakrit Sahitya Ka Itihas
Author(s): Jagdishchandra Jain
Publisher: Chaukhamba Vidyabhavan

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Page 784
________________ अलंकार ग्रन्थों में प्राकृत पद्यों की सूची ७७७ सहि ! णवणिहुणवणसमरम्मि अंकवाली सहीए णिविडाए। हारो णिशरिओ विअ उच्छेरंतो तदो कहं रमिअम् ॥ (काव्य० प्र०४, ८९) हे सखि ! तुम्हारे नवसुरत-संग्राम के समय तुम्हारी एक मात्र सखी अङ्कपाली (आलिंगन-लीला) ने तुम्हारे उछलते हुए हार को रोक दिया, उस समय तुमने कैसा रमण किया ! (व्यतिरेक अलङ्कार का उदाहरण) सहि ! विरइऊणमाणस्स मज्झ धीरत्तणेण आसासम् । पिअदंसणविहलंखलखणस्मि सहसत्ति तेण ओसरिअम् ॥ (काव्य० प्र० ४, ६९) हे सखि ! तेरे धैर्य ने विराम को प्राप्त मेरे मन को बहुत आश्वासन दिया, किंत 'प्रियदर्शन के विशृङ्खल क्षण में वह धैर्य सहसा ही भाग खड़ा हुआ। (उत्प्रेक्षा, विभावना अलङ्कार का उदाहरण) सहि ! साहसु सम्भावेण पुच्छिमो किं असेसमहिलाणं। वड्ढंति करटिअ चिअ वलआ दइए पउत्थंमि ॥ (शृङ्गार० ७१, ८९; गा० स०५, ५३) हे सखि ! बता, हम सरल भाव से पूछ रहे हैं, क्या दयिता के प्रवास में जाने पर सभी महिलाओं के हाथ के कंकण बढ़ जाते हैं ? सहि ! साहसु तेण समं अहंपि किं णिग्गआ पहाअम्मि । अण्णच्चिा दीसइ जेण दप्पणे कावि सा सुमुही॥ (स.कं०५, २९) हे सखि ! बता क्या उसके साथ प्रभात में मैं भी गई थी? क्योंकि वह सुन्दरी दर्पण में कुछ और ही दिखाई दे रही है । साअरविण्णजोबणहत्थालम्बं समुण्णमन्तेहिं। अव्भुट्टाणं विअ मम्महस्स दिण्णं थणेहि ॥ (ध्वन्या० उ०२, पृ० १८८) हे बाले ! (यौवन द्वारा) आदरपूर्वक आगे बढ़ाये हुए, यौवनरूपी हार्थों का अवलंबन लेकर उठते हुए तुम्हारे दोनों उन्नत स्तन मानो कामदेव का स्वागत कर रहे हैं । ( अर्थशक्ति-उद्भव ध्वनि का उदाहरण) सा नइ सहत्थदिण्णं अज वि ओ सुहअ ! गंधरहिअंपि। उच्चसिअणअरघरदेवद व णोमालिकं वहइ॥ (शृङ्गार० १४, ६६; गा० स०२,९४) हे सुन्दर ! वह तुम्हारे द्वारा दी हुई गंधविहीन नवमालिका को भी, नगर से निष्कासित गृइदेवता की भाँति, धारण कर रही है। सा तइ सहत्थदिण्णं फरगुच्छणकद्दमं थणुच्छंगे। परिकुविआ इव साहइ सलाहिरां गामनरुगीणम् ॥ (स० कं ५, २२९)

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