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अलंकार ग्रन्थो में प्राकृत पद्यों की सूची
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उस सुभग का नाममात्र लेने से उसका समस्त अंग स्वेद से गीला हो गया। उसके पास संदेश लेकर दूती को भेजती हुई वह स्वयं ही उसके घर के आंगन में जा पहुँची!
सेलसुआरुद्धद्धं मुद्धाणा बद्धमुद्धससिलेहम् ।
सीसपरिडिअगङ्गं संझापण पमहणाहम् ॥ (स० के०१, ४०) जिसका अर्ध भाग पार्वती से रुद्ध है, जिसके मस्तक पर चन्द्रमा की मुग्ध रेखा है, जिसके सिर पर गंगा स्थापित है, संध्या के लिये प्रणत ऐसे गणों के नाथ शिवजी को ( नमस्कार हो)! (क्रियापदविहीन का उदाहरण)
सो तुह कएण सुन्दरि! तह झीणो सुमहिलो हलिअउत्तो। जह से मच्छरिणीअ वि दोच्चं जाआए पडिवण्णम् ॥
(स० के०५, २०१; गा० स०१,८४) हे सुन्दरि! रूपवती भार्या के रहते हुए भी तेरे कारण हलवाहे का पुत्र इतना दर्बल हो गया है कि उसकी ईर्ष्यालु भार्या ने उसका दूतीकर्म स्वीकार कर लिया।
(अर्थावलि अलंकार का उदाहरण) सो नत्थि एत्थ गामे जो एयं महमहन्तलायण्णम् । तरुणाण हिअयलूडि परिसक्कन्ति निवारेइ ॥
(काव्या० पृ० ३९८, ६६३; काव्य० प्र० १०,५६९) इस गाँव में ऐसा कोई युवक नहीं जो इस सौन्दर्य की कस्तूरी से मतवाली, तरुणों के हृदय को लूटनेवाली और इधर-उधर घूमने वाली (नायिका) को रोक सके ! (रूपक, संकर, संसृष्टि अलंकार का उदाहरण)
सो मुद्धमिओ मिअतहिआहिं तह दूणो तुह आसाहिम् । जह संभावमईणवि णईणं परम्मुहो जाओ ॥
(सं००३,१११) वह भोला मृग मृगतृष्णा से ठगा जाकर इतना खिन्न हो गया कि अब वह जलसंपन्न नदियों का जल पीने से भी परांमुख हो गया है !
(भ्रांति अलंकार का उदाहरण) सो मुद्धसामलंगो धम्मिल्लो कलिअ ललिअणिअदेहो। तीए खंधाहि बलं गहिअ सरो सुरअसंगरे जअइ॥
(काव्य०४,८७) मुग्धा के श्यामल केशों का जूड़ा किसी सुन्दर कामदेव के समान प्रतीत होता है जो उस सुन्दरी के कन्धों पर फैलकर (केशाकर्षण के समय) रतिरूपी युद्ध में कामीजन को अपने वश में रखता है।
सोहइ विसुद्धकिरणो गअणसमुद्दम्मि रअणिवेलालग्गो। तारामुत्तावअरो फुडविहडिअसेहसिप्पिसम्पुडविमुक्को॥
(स० के०४,४१, सेतु. १, २२)