Book Title: Prakrit Sahitya Ka Itihas
Author(s): Jagdishchandra Jain
Publisher: Chaukhamba Vidyabhavan
View full book text
________________
अनुक्रमणिका
८३३ पार्श्वसूरि १८७
पिंडनियुक्तिटीका ६७१ (नोट) पार्श्वस्थ १३९, १४४, २०७, ३१०, पिंडपात १५२, १६० ३५१
पिंडशुद्धि ३१० पाल ३६७
पिंडविसोहि १३१ पालक (ग) १२९, ३५४
पिच्छी ३११, ३२१ पालित (पालित्तय-पादलिप्तसरि) पितृमेध ५००
३३९, ३५५, ३७६, पिपीलियानाण ६८० ३७७, ३७८, ३९४, ४१७, १९७, पिप्पलग (कैंची) १३६, २२५ ५७३ (नोट), ६५२, ६५५ (कोशकार), ६६७,६८८
पिप्पलाद ३८८, ३९०, ५०८ पालि १४, १६, २७, ४०, ६८१, ६०५
पियमेलय (तीर्थ) ४०८ पालि और अशोक की धर्मलिपियों
पिशल १८, २२, २५, १७५, ६४९
पिशाच ३८८, ६४६ (नोट) पालिताना ४६४
पिशाच (ज)२७, २८ पावन ३२४
पिशाची (देवी)३६८, ४३० पाशचन्द्रमतिनिराकरण ३३३
पिहिताश्रव ३१९ पासजिनथव ५७०
पीपलियागच्छ ३४० (नोट)
पुट २२५ पासनाहचरिय (पार्श्वनाथ चरित)
पुटभेदन १५० ३६९, ४४८,५४६ पासनाहलहुथव ५७०
पुंडरीक (अंगबाझ का भेद) २७१, पासावचिज (पार्वापत्य) ७१, २०२, २०७ (नोट), २५०
पुंडरीक (राजा)८५ पाहुडबंधन २८५
पुंडरीक (पर्वत)८० पिंगक ३९९
पुंडरीक (ऋषि) १८७ (नोट) पिंगल (यक्ष) ४८२
पुंडरीक-कंडरीक ४९१ . पिंगल ६४२, ६५०
पुंडरीकस्तव ५७२ पिंगल (परिव्राजक)६७
पुण्ड्रा ३९० पिंगलनाग ६५४
पुण्ड्रेशुवन ४२२ पिंगलटीका ६५४
पुण्य ३२४ पिंगलप्रकाश ६५४
पुण्यसागरोपाध्याय ११६ पिंगलतस्वप्रकाशिका ६५४
पुण्यकीति ५०५ पिंड १४४, १८०
पुत्तलिका ५४५ पिंडद्वार १८२
पुत्रवती नारी ५३९ पिंडनिज्जुत्ति (पिंढनियुक्ति ) ३३ पुत्री (के संबंध में)५६४
(नोट), ३४ ( नोट), ३५, पुद्गल (मांस) १७७ १३१, १६१, १६३, १८०, १९४, पुद्गलपरावर्तस्वरूपप्रकरण ३४९ १९६, २३१, २३९, २७०, ३०८ पुद्गलमंगप्रकरण ३४९ ५३ प्रा० सा०

Page Navigation
1 ... 837 838 839 840 841 842 843 844 845 846 847 848 849 850 851 852 853 854 855 856 857 858 859 860 861 862 863 864