Book Title: Prakrit Sahitya Ka Itihas
Author(s): Jagdishchandra Jain
Publisher: Chaukhamba Vidyabhavan

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Page 863
________________ प्राकृत साहित्य का इतिहास वाराणसीय (बनारसीदास का मत) विकथा (चार)५४,३६२ विकथानुयोग ६३ वाराह ६७५ विकाल १६० वाराह (पर्वत) २९४ (नोट), विस्मसेणचरिय ४७२ वाराहीसंहिता २६७ विवेविणी (विक्षेपणी कथा)२०१, वारिभद्रक २०२ ३६१ (नोट),४१८ वार्तिकार्णवभाष्य ६४८ विक्रमराजा ३२१, ४७३ वालुंक (फूट)२११ विक्रमकाल ३३० वाल्मीकि ४१८, ६३२ विक्रमसंवत् का आरंभ ४५८ वाल्मीकि ६४६ विक्रमादित्य २६९ (नोट), ३१९, वाल्मीकिरामायण ३६३, ५२७, १२८, __३५४, ४४७, ५७५, १८६ ५८६ विक्रमाक (मुद्रा)६७९ विक्रमोर्वशीय ६२१ वाल्टर शूबिंग १७४ विचार (विहार) भूमि २२३ वासगृह ४२८ विचारपंचाशिका ३४९ वासवदत्ता ५५१ (नोट), ६३३ ।। वासावास (पजसण) २०३।। विचारामृतसंग्रह ६७४ वासिड (वाशिष्ठ गोत्र)६०, ११५ विचारषत्रिंशिका (दंडकप्रकरण) वासिष्ठीपुत्र पुलमावि ६८३ विचारसत्तरि ३४९ वासुदेव १५५, ३९३ विचारसारप्रकरण ३३० वासुदेव (नौ.) ११७ विजय (यव)२९५ वासुदेव आयतन २५० वासुदेव विष्णु मिराशी (प्रोफ़ेसर) विजय (चोरसेनापति)८४ विजयकुमार ५६१ ५७४ (नोट) विजयचन्दकेवलीचरिय ५६८ वासुपूज्य ५९, ६३, २९५, ५३५ वासुपूज्यस्वामीचरित ५२६ विजयघोष ब्राह्मण १७१, ३५७ विजयदयासूरि ५३७(नोट) वास्तक २०७ विजयपुरी ४२९ वास्तविक यज्ञ ५३० विजयवाराणसी ३५५ वास्तुशास्त्र ४३, ५०७ विजयविमल (विचारपंचाशिका के वाहरिगणि ५२ कर्ता)३४८ वाहीक २८, ६४६ (नोट) विजयविमलगशि (गच्छाचार के वाहीका (की)११, १८, ६४१ ____टीकाकार) १२७ विंटरनीज़ (डॉक्टर) ४३, १६४, १५६ विजयसिंह (समुद्रसूरि के शिष्य) (नोट), २६८ ५०५ विंशतिजाततीर्थवन्दन ३४४ विजयसिंह (माचार्य)३९९ विंशतिस्थानकचरित्र ४८२ विजयसिंह (चूर्णीकार) १८७ विकटनितम्बा ६६० विजयसिंह (सोमप्रभ के गुरु)५२६

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